Top Story

लाल सलाम से जय सियाराम, दीदी के खिलाफ लेफ्ट ने क्यों थामा भगवा झंडा

West Bengal Election : तुष्टीकरण के खिलाफ मजबूत आवाज़ कर बंगाल में पैठ बना चुकी बीजेपी ने वामपंथी कार्यकर्ताओं और नेताओं को नया प्लेटफॉर्म दिया है। नई सदी के पहले दशक में ममता बनर्जी ने उन्हें बताया कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) की अगुआई वाले गठबंधन ने 34 साल तक गरीब को गरीब बनाए रखा। गरीबों की असली नेता वही हैं। नंदीग्राम और सिंगूर से ममता ने ये साबित कर दिखाया। अब लगातार तीसरी बार सीएम की कुर्सी के लिए संघर्ष कर रही ममता को ये समझाने में संघर्ष करना पड़ रहा है कि पहली बार जिन वादों पर वो सत्ता शिखर पर पहुंची उन पर वो कितना खरा उतरीं। 2011 से 2021 के बीच का हिसाब बीजेपी मांग रही है।

Bengal Election : वैचारिक कसावट सत्ता का समानुपातिक हो गया है। और हर कोई बुद्धदेब, येचुरी, प्रकाश करात या इंद्रजीत गुप्ता होता नहीं है। खासकर जब सदियों पुरानी विचारधारा के साथ दशकों तक काम करने वाले को महसूस होने लगे कि वो जड़ता के साथी हैं। यही पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्टों के साथ हुआ। दशकों तक दीवारों में क्रांति गीत लिखने वाले तृणमूल कांग्रेस के रास्ते अगर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थाम रहे हैं तो इसके पीछे भी यही कारण है।


लाल सलाम से जय सियाराम, दीदी के खिलाफ लेफ्ट ने क्यों थामा भगवा झंडा

West Bengal Election : तुष्टीकरण के खिलाफ मजबूत आवाज़ कर बंगाल में पैठ बना चुकी बीजेपी ने वामपंथी कार्यकर्ताओं और नेताओं को नया प्लेटफॉर्म दिया है। नई सदी के पहले दशक में ममता बनर्जी ने उन्हें बताया कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) की अगुआई वाले गठबंधन ने 34 साल तक गरीब को गरीब बनाए रखा। गरीबों की असली नेता वही हैं। नंदीग्राम और सिंगूर से ममता ने ये साबित कर दिखाया। अब लगातार तीसरी बार सीएम की कुर्सी के लिए संघर्ष कर रही ममता को ये समझाने में संघर्ष करना पड़ रहा है कि पहली बार जिन वादों पर वो सत्ता शिखर पर पहुंची उन पर वो कितना खरा उतरीं। 2011 से 2021 के बीच का हिसाब बीजेपी मांग रही है।



​भगवान की शरण में लेफ्ट
​भगवान की शरण में लेफ्ट

ममता के विपरीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी 2014 से 2020 के बीच का हिसाब जोर-शोर से दे रही है। तीन तलाक पर कानून, धारा 370 हटाना और अयोध्या में राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त होना। तीन तलाक को अगर समान नागरिक संहिता की ओर पहला कदम मानकर चलें तो बीजेपी ने अपने वो सारे वादे पूरे किए जिनकी आड़ में उस पर हर चुनाव लड़ने का आरोप लगता रहा। 27 परसेंट मुस्लिम वोट शेयर वाले पश्चिम बंगाल में इसका असर होना लाजिमी है। तभी तो 2016 के विधानसभा चुनाव में 16 परसेंट वोट शेयर से 2019 के लोकसभा चुनाव में 40 परसेंट वोट हासिल कर बीजेपी ने लंबी छलांग लगाई है।

बीजेपी की छलांग पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के सफाए के बाद वैचारिक-सैद्धांतिक शून्यता की भी देन है। तृणमूल या ममता बनर्जी के पास को आइडियोलॉजिकल बेस नहीं है। इस लिहाज से वामपंथी शासन की बात करें तो वो मार्क्सवाद की मजबूत वैचारिक धरातल पर खड़ा था। शासन से बेदखल होते ही जो नेता लेफ्ट से तृणमूल में गए वो किसी वैचारिक जुड़ाव के लिए नहीं गए। और जैसे ही लेफ्ट अप्रासंगिक हुआ बीजेपी ने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की मजबूत विचारधारा पर पश्चिम बंगाल में बिगुल बजा दिया। कोई कनेक्शन नहीं है लेकिन जरा घनघोर वामपंथी केरल के सीएम पिनाराई विजयन के बयान पर गौर कीजिए। उन्होंने वोटिंग के दिन ये कहा कि सबरीमाला के भगवान लेफ्ट फ्रंट के साथ हैं। नास्तिक विचारधारा के क्षत्रप का ये बयान अभी भी चर्चा में है।



​लेफ्ट से निकले तृणमूल में अटके
​लेफ्ट से निकले तृणमूल में अटके

स्ट्रीट फाइटर ममता बनर्जी में वामपंथियों को वो जुझारू नेता के दर्शन दिए जो ज्योति बसु और बुद्धदेब भट्टाचार्य के अभिजात्य वामपंथ से अलग था। एक जमीनी नेता जो सही मायने में दबे कुचले गरीबों के लिए संघर्ष कर रही है। पर सत्ता में आने के बाद केंद्र से उनकी सीधी टक्कर चालू हो गई। 2011 में ममता ने कुर्सी संभाली और 2014 में नरेंद्र मोदी ने। इस बीच ममता के कई फैसलों को मुस्लिम तुष्टीकरण बताकर बीजेपी ने तीखा विरोध जताया।

मुअज्जिनों के लिए सैलरी, अल्पसंख्यकों के लिए अस्पताल, मूर्ति विसर्जन पर रोक, कई जिलों में दंगे और बर्धमान में जमातुल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) का अड्डा सामने आने के बाद संघ से जुड़े संगठनों ने तो उन्हें जेहादी दीदी घोषित कर दिया। इसके बारे में आप इस लेख में विस्तार से पढ़ सकते हैं - जॉन ऑफ आर्क, बंगाल की दुर्गा, 'जिहादी दीदी'.. ममता ने रोका था जेपी का रास्ता, मोदी का रथ रोक पाएंगी? ऐसे में वाम दलों से ममता की पार्टी में आए नेता और कार्यकर्ता ठगा महसूस करने लगे। लेफ्ट अप्रासंगिक है, इसलिए असंतुष्ट वामपंथियों के लिए वो कोई ठिकाना रह नहीं गया। इधर बीजेपी राज्य में तेजी से वोट प्रतिशत और वैचारिक प्रभाव कायम करने लगी। इसी समय बीजेपी ने उन असंतुष्ट नेतओं के लिए भी अपने दरवाजे खोल दिए।

भगदड़ और तेज हुई जब 2019 में मोदी को रोकने के लिए फेडरल फ्रंट के नाम पर लेफ्ट और तृणमूल के बीच गठबंधन की सहमति बनी। हालांकि सीट शेयरिंग न हो सकी लेकिन इसने तृणमूल और वामदलों के बीच भेद को खत्म कर दिया। इससे वैचारिक प्रतिबद्धता वाले लेफ्ट कार्यकर्ताओं को ठेस पहुंची। आखिर जो ममता उनका वजूद खत्म करने पर अमादा थी , उसके साथ हाथ कैसे मिलाया जा सकता है.. ये उनके जेहन में है। तो उनके लिए दीदी को हराना अहम है।



​कौन हिंदुओं को भगाएगा, कौन बचाएगा
​कौन हिंदुओं को भगाएगा, कौन बचाएगा

असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स की रिपोर्ट आने के बाद ममता ने इसे राजनीतिक रंग दिया पश्चिम बंगाल में। तृणमूल ने ये दलील दी कि बांग्लादेश से आए हिंदुओं को भी बीजेपी भगाना चाहती है और वो ऐसा होने नहीं देगी। मतुआ समुदाय का बड़ा तबका अचानक बीजेपी पर संदेह करने लगा। अमित शाह और नरेंद्र मोदी ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लाकर सारा संशय दूर कर दिया। सीएए के विरोध में जिस तरीके से पूरे पश्चिम बंगाल में प्रदर्शन हुए उसने बीजेपी को फायदा पहुंचाया। ध्रुवीकरण के बाद लेफ्ट से तृणमूल में आए नेताओं और कार्यकर्ताओं में भगदड़ मची। भगदड़ के सिलसिले के हम समझाएंगे लेकिन यहां एक उदाहरण दिए चलते हैं। पिछले साल 21 नवंबर को 500 लेफ्ट कार्यकर्ताओं ने पूर्वी मिदनापुर में हंसिया हथौड़ा, बाली छोड़ कर कमल थाम लिया।



​भाईपो ने काटे ममता के 'दोनों हाथ'
​भाईपो ने काटे ममता के 'दोनों हाथ'

शारदा चिटफंड और नारदा स्टिंग के बाद ममता के दाहिने हाथ मुकुल राय जब दोबारा तृणमूल से जुड़े तब तक नए सितारे का उदय हो चुका था। अभिषेक बनर्जी। ममता बनर्जी का भतीजा। ये आजकल पश्चिम बंगाल चुनाव प्रचार में अमित शाह और नरेंद्र मोदी के निशाने पर हैं। दोनों अभिषेक का नाम लिए बिना भाईपो कहकर ममता पर प्रहार कर रहे हैं। जब मुकुल राय को लगा कि संगठन में अभिषेक का कद बड़ा हो रहा है तो उन्होंने नवंबर, 2017 में बीजेपी का दामन थाम लिया। अब वो ममता के लिए धोखेबाज हो गए। नंदीग्राम के सेनानी सुवेंदु अधिकारी ने उनकी जगह ले ली लेकिन पिछले साल के आखिर में उसी भाईपो के कारण मिदनापुर के शेर सुवेंदु अधिकारी ने बीजेपी जॉइन कर लिया। वो अकेले नहीं आए। अपने साथ 10 विधायक, एक सांसद और एक पूर्व सांसद लेकर आए। इनमें सीपीएम और सीपीआई के एक-एक विधायक भी शामिल थे। सुवेंदु आज बीजेपी के तरकश में ब्रह्मास्त्र साबित हो रहे हैं। उन्होंने खुल कर ममता को घेरा है। सुवेंदु ने आरोप लगाया कि ममता का वश चले तो वो पश्चिम बंगाल को मिनी पाकिस्तान बना देंगी। जय सियाराम उनका और उनके समर्थकों का नया नारा है।



मुझको हुई न खबर, चोरी-चोरी छुप-छुप कर..
मुझको हुई न खबर, चोरी-चोरी छुप-छुप कर..

ये कहानी 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले की है। स्निगधेंदु भट्टाचार्य ने अपनी किताब मिशन बंगाल में इसका जिक्र किया है। बॉलीवुड का ये हिट नंबर सीपीएम के वेटरन खगेन मुर्मू का रिंगटोन था। मार्च में कैलाश विजयवर्गीय ने उन्हें फोन लगाया तो यही रिंगटोन बजा। 12 मार्च को वो दिल्ली गए और बीजेपी में शामिल हो गए। सात दिन बाद पार्टी ने उन्हें उत्तरी मालदा से लोकसभा का टिकट दे दिया। एक सीटिंग विधायक जो 40 साल से मार्क्सवाद का झोला उठा रहा था, उसका बीजेपी जॉइन करना एक बड़ी घटना थी। उन्होंने भगवा अंगवस्त्र कबूल कर जय सियाराम का नारा लगा दिया। उनका लॉजिक सिंपल था। आखिर कौन तृणमूल को हरा सकता है.. लेफ्ट में वो ताकत रही नहीं। फिर बीजेपी ही एकमात्र रास्ता है। मुकुल राय इस इंजीनियरिंग में अहम भूमिका निभा रहे थे। टीएमसी सांसद सौमित्र खान और अनुपम हाजरा भी उन्हीं के जरिए बीजेपी में शामिल हुए। मुकुल राय ने भाटपारा के डॉन और टीएमसी के बाहुबली अर्जुन सिंह को बीजेपी में जॉइन करा ममता को बड़ा झटका दिया था। ये कभी कांग्रेस में थे और अब जय सियाराम के सहारे बैरकपुर से बीजेपी सांसद हैं।



​न खत्म होने वाला सिलसिला
​न खत्म होने वाला सिलसिला

जब 2021 विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार शुरू हो गया उसके बाद भी लेफ्ट खेमे से बीजेपी में आवक जारी रही। सिल्लीगुड़ी के धाकड़ सीपीएम नेता शंकर घोष ने इसी 13 मार्च को भगवा धारण कर लिया। कुछ तृणमूल से आए जो पहले लेफ्ट का झंडा उठाते थे जैसे - राजीव बनर्जी, प्रबीर घोषाल, वैशाली डालमिया। मुकुल राय ने 2019 के चुनाव परिणाम के ठीक बाद 28 मई को नई दिल्ली में सीपीएम विधायक देबेंद्रनाथ रॉय समेत तीन विधायकों और नगर निकायों में चुने हुए 60 नेताओं को बीजेपी जॉइन कराया। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान जब मोदी ने कहा था कि तृणमलू के 40 विधायक उनके संपर्क में हैं तो टीएमसी के डेरेक ओ ब्रॉयन ने कहा था कि एक कॉरपोरेटर भी बीजेपी में नहीं जाएगा। दूसरी तरफ एक दिन में तीन नगरपालिकाओं पर बीजेपी का कब्जा हो गया। यहां तक कि फॉरवर्ड ब्लॉक से टीएमसी में आए मनिरुल इस्लाम भी बीजेपी में शामिल हो गए।





from https://ift.tt/3dnYbdb https://ift.tt/2EvLuLS