Top Story

Maratha Quota: केंद्र की SC से अपील, मराठा आरक्षण निरस्त करने के फैसले पर पुनर्विचार हो

नई दिल्लीकेंद्र ने सुप्रीम काेर्ट से आग्रह किया है कि वह पांच मई के बहुमत से लिए गए अपने फैसले पर पुनर्विचार करे। इस फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा है कि 102वें संविधान संशोधन के बाद राज्यों के पास नौकरियों और दाखिलों में आरक्षण प्रदान करने के लिए सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की घोषणा करने का अधिकार नहीं है। हाल में महाराष्ट्र सरकार ने मराठाओं को आरक्षण दिया था। शीर्ष न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया था। मराठा आरक्षण निरस्त करने के फैसले के खिलाफ केंद्र ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। मामले में केंद्र ने उल्लेख किया है कि संशोधन ने एसईबीसी की पहचान और घोषणा करने संबंधी राज्यों की शक्तियां नहीं छीनी हैं और शामिल किए गए दो प्रावधानों ने संघीय ढांचे का उल्लंघन नहीं किया है। क्‍‍‍‍या है मामला? न्यायमूर्ति अशोक भूषण के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से मराठाओं को दिए गए आरक्षण को खारिज कर दिया था। साथ ही आरक्षण को 50 फीसदी तक सीमित रखने के 1992 के मंडल संबंधी निर्णय को वृहद पीठ को भेजने से इनकार कर दिया था। पीठ ने 3:2 के बहुमत से किए गए अपने निर्णय में व्यवस्था दी थी कि 102वां संविधान संशोधन केंद्र को एसईबीसी की पहचान और घोषणा करने की विशेष शक्ति देता है। कारण है कि केवल राष्ट्रपति ही सूची को अधिसूचित कर सकते हैं। इस संविधान संशोधन के चलते ही राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) की स्थापना हुई। वर्ष 2018 में किए गए 102वें संविधान संशोधन में दो अनुच्छेद लाए गए थे। इनमें 338 बी एनसीबीसी के ढांचे, दायित्व और शक्तियों से संबंधित है तथा अनुच्छेद 342ए किसी खास जाति को एसईबीसी के रूप में अधिसूचित करने की राष्ट्रपति की शक्ति और सूची में बदलाव की संसद की शक्ति से संबंधित है। क‍िस तरह आया फैसला? केंद्र ने निर्णय पर पुनर्विचार के लिए बृहस्पतिवार को याचिका दायर की। इसमें मामले में खुली अदालत में सुनवाई करने और संशोधन के सीमित पहलू पर बहुमत से लिए गए निर्णय को याचिका पर फैसला होने तक स्थगित रखने का आग्रह किया गया है। पुनर्विचार याचिका में केंद्र ने कहा है कि बहुमत से किए गए निर्णय ने अनुच्छेद 342ए की वैधता को बरकरार रखा है। लेकिन, ऐसा करने में पीठ ने व्याख्या दी है कि प्रावधान राज्यों को उस शक्ति से वंचित करता है जो संबंधित राज्यों में एसईबीसी की पहचान और घोषणा करने के लिए नि:संदेह उनके पास है। संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट ने 102वें संशोधन की संवैधानिक वैधता बरकरार रखने को लेकर न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर के साथ सहमति जताई थी। लेकिन, बहुमत के फैसले में कहा था कि राज्य सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की सूची पर फैसला नहीं कर सकते। केवल राष्ट्रपति के पास ही इसे अधिसूचित करने का अधिकार है। न्यायमूर्ति भूषण और न्यायमूर्ति नजीर ने अल्पमत के फैसले में कहा था कि केंद्र एवं राज्य के पास एसईबीसी की सूची पर फैसला करने का अधिकार है।


from https://ift.tt/3eM90Xi https://ift.tt/2EvLuLS