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इंडियन आर्म्ड फोर्सेस को मिल सकते हैं हथियारों से लैस 30 ड्रोन

नई दिल्ली इंडियन आर्मी, नेवी और एयरफोर्स को आर्म्ड ड्रोन यानी हथियारों से लैस ड्रोन मिल सकते हैं। तीनों सेनाओं के लिए 10-10 आर्म्ड ड्रोन की जरूरत को इस बार रक्षा अधिग्रहण समिति (डीएसी) की मंजूरी मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। काफी वक्त से अमेरिका से एमक्यू-9 सी (प्रिडेटर ड्रोन) लेने के लिए आर्म्ड फोर्स अपनी जरूरत रक्षा मंत्रालय के सामने रख रहा है। इंडियन नेवी के पास अभी दो प्रीडेटर ड्रोन हैं जो हिंद महासागर में निगरानी कर रहे हैं। ये ड्रोन अनआर्म्ड हैं यानी इनसे निगरानी तो रखी जा सकती है पर अटैक नहीं हो सकता है। ये यूएस से लीज पर लिए गए हैं। नेवी को आर्म्ड ड्रोन्स की भी जरूरत है। इसलिए काफी वक्त से इसके लिए बातचीत चल रही है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में डीएसी इस पर फैसला ले सकती है और एओएन (एक्सेपटेंस ऑफ नैसेसिटी) को मंजूरी मिल सकती है। अगर इसे मंजूरी मिलती है तो यह सीडीएस का पद बनने के बाद पहली ऐसी खरीद होगी जो तीनों सेनाएं (आर्मी, नेवी, एयरफोर्स) मिलकर करेंगी। 2018 में अमेरिका ने भारत को गार्डियन ड्रोन का आर्म्ड वर्जन ऑफर किया था। भारत पहले नेवी के लिए अनआर्म्ड (बिना हथियारों के) गार्डियन ड्रोन और अटैक करने के लिए आर्म्ड ड्रोन दोनों के ऑप्शन देख रहा था। लेकिन फिर इस पर सहमति बनी कि अटैक और सर्विलांस (निगरानी) उसी ड्रोन से किया जा सकता है। शुरू में नेवी अपने लिए आर्म्ड ड्रोन्स देख रही थी फिर आर्मी और एयरफोर्स ने भी आर्म्ड ड्रोन्स की जरूरत बताई तो तय किया गया कि तीनों मिलकर आर्म्ड ड्रोन ले सकते हैं। भारत अमेरिका से 30 प्रिडेटर- बी ड्रोन ले सका है, जिसमें से आर्मी, नेवी और एयरफोर्स को 10-10 ड्रोन मिलेंगे। यह 48 घंटे तक हवा में रह सकता है और इसकी रेंज 6000 नॉटिकल माइल्स है। इसमें 9 हार्ड पॉइंट होते हैं जिसमें सेंसर, लेजर गाइडेड बॉम और सतह से जमीन में मार करने वाली मिसाइल लगाई जा सकती है। यह दो टन का पेलोड (भार) ले जा सकता है। हाई एल्टीट्यूट लॉग इंड्यूरेंस (HALE) यूएवी के लिए इंडियन नेवी डीएसी (रक्षा अधिग्रहण समिति) की मंजूरी लेगी। आर्मी, नेवी और एयफोर्स ने मिलकर इसकी क्वॉलिटेटिव रिक्वॉयरमेंट पूरी कर ली है। अमेरिका ने भी भारत को इन हथियारबंद ड्रोन को बेचने की सैद्धांतिक सहमति दे दी है। पिछले साल मई से भारत-चीन के बीच ईस्टर्न लद्दाख में तनाव चल रहा है। जिसके बाद इसकी ज्यादा जरूरत महसूस होने लगी ताकि लंबे वक्त तक हवा में रहने वाले ड्रोन लगातार निगरानी रख सकें।


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