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जासूसी तो होती है, लेकिन इस तरह की नहीं कि राष्ट्रहित के बजाए स्वहित साधा जाए

सरकारी जासूसी का जैसा रहस्योघाटन आजकल हो रहा है, स्वतंत्र भारत में शायद पहले कभी नहीं हुआ। वैसे, दुनिया की कोई सरकार ऐसी नहीं, जो जासूसी का पूरा तंत्र न चलाती हो, लेकिन लोकतंत्र में जासूसी भी कुछ कानून-कायदों के मुताबिक चलती है। उसे कुछ मर्यादाओं का पालन करना होता है। इस बार हमारी संसद में सरकारी जासूसी का ऐसा मामला उठा है, जिसके कारण सरकार की मुश्किल बढ़ी है।

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