104 साल की उम्र में स्वतंत्रता सेनानी बिरदी चंद गोठी का निधन, राजकीय सम्मान के साथ बैतूल में अंतिम संस्कार

बैतूल एमपी (Madhya Pradesh News Update) के बैतूल में 104 साल के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिरदी चंद गोठी का शनिवार की दोपहर निधन हो गया है। उनके निधन की खबर सुनकर शोक की लहर व्याप्त हो गई और रविवार सुबह उनके निवास पर उनके अंतिम दर्शन के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा। उनके निवास पर ही उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया और पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। दरअसल, जमीन जमींदार परिवार से ताल्लुक रखने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिरदी चंद गोठी के बारे में बताया जाता है कि उनके परिवार का स्वतंत्रता संग्राम में बड़ा योगदान रहा है। आजादी के आंदोलन के ध्वजवाहक रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिरदी चंद गोठी 2 नवंबर 1917 को बैतूल में जन्मे थे। वर्तमान में 104 वर्ष के थे। उनके बारे में बताया जाता है कि जब गांधी जी बैतूल आए, तब बिरदीचंद जी गोठी उनके साथ ही थे और गांधीजी से प्रेरित होकर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। परिवार में कई स्वतंत्रता सेनानी रहे उनके भाई स्वर्गीय गोकुलचंद गोठी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनके काका दीपचंद गोठी भी महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और बैतूल के पहले विधायक भी रहे है। उनके ही नेतृत्व में चर्चित जंगल सत्याग्रह शुरू हुआ था। गोठी परिवार का निवास स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई का केंद्र बिंदु था। वहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की आवाजाही, आंदोलन की रणनीति बना करती थी। इस तरह के माहौल का असर बिरदीचंद गोठी पर गहरा पड़ा। भारत छोड़ो आंदोलन में कूदे बिरदीचंद महज 17-18 वर्ष की आयु में भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े और जेल भी गए। वे आंदोलन के लिए अपने जीवन काल में दो बार जेल गए। उन पर हमेशा गांधी की विचारधारा का गहरा प्रभाव रहा। सदैव गांधी की अहिंसा, सहष्णुता और भाई चारे का ही समाज मे प्रचार प्रसार करते रहे। उन पर अपने पिता स्वर्गीय मिश्रीलाल गोठी और चाचा दीपचंद गोठी के संघर्ष और विचारों को लेकर अट्टू विश्वास रहा है। उनका जीवन त्याग,सादगी भरा और समाज के लिए समर्पित रहा। रविवार की सुबह उनके निवास पर उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया । प्रशासन की ओर से तहसीलदार ने पुष्प चक्र चढ़ाकर उनको श्रद्धांजलि अर्पित की गई। निवास पर ही उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया और राष्ट्र गीत हुआ। परिवार की महिलाओं ने भी उन्हें कंधा दिया। कोठी बाजार मोक्ष धाम में उनका अंतिम संस्कार किया गया।
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