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'बीवी से लड़कर ऑफिस आते हैं, कब्जियत के चलते ऊल-जुलूल फैसले लेते हैं'- सातवें वेतनमान को लेकर गुस्साए डॉक्टरों का अफसरों पर तंज, वायरल हुई चिट्ठी


भोपाल 
मध्य प्रदेश के सागर स्थित बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के टीचर्स एसोसिएशन की एक चिट्ठी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। चिट्ठी में डॉक्टरों ने सातवें वेतनमान के मुद्दे पर प्रदेश के नौकरशाहों पर निशाना साधा है। डॉक्टरों ने लिखा है कि अफसर अपनी पत्नियों से लड़ कर दफ्तर आते हैं और ऊल-जुलूल फैसले लेते हैं। उन्हें कब्जियत की समस्या रहती है। डॉक्टरों ने उन्हें इसकी दवा देने की सलाह भी दी है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही चिट्ठी में डॉक्टरों को सातवें वेतनमान का लाभ नहीं मिलने को लेकर अफसरों पर गुस्सा जताया गया है। इसमें कहा गया है कि प्रदेश के सभी विभागों में सातवां वेतनमान जनवरी, 2016 से लागू है, लेकिन चिकित्सा शिक्षा विभाग में इसे 2018 से लागू किया गया। चिट्ठी में यह भी कहा गया है कि डॉक्टरों का एक प्रतिनिधिमंडल इस मुद्दे पर बातचीत करने के लिए शीर्ष अफसर से मिलने गया तो उन्हें धमकी दी गई। अफसर ने कहा कि डॉक्टरों को निलंबित करने की बजाय उनका रजिस्ट्रेशन ही रद्द कर दिया जाएगा और वे प्राइवेट प्रैक्टिस भी नहीं कर सकेंगे। चिट्ठी सागर मेडिकल कॉलेज के टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. सर्वेश जैन और सचिव डॉ. शैलेन्द्र पटेल के हस्ताक्षर से जारी की गई है। एसोसिएशन ने इसमें संबंधित अफसरों को मनोवैज्ञानिक सलाह के साथ ही क्रेमेफिन प्लस जैसी कब्जियत दूर करने वाली दवाइयां दिए जाने की सलाह दी है, जिससे उनका पेट साफ रहे। यदि ये दवा न मिले तो अफसरों को डुपालेक्स या पेटसफा भी दी जा सकती है। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए डॉ सर्वेश जैन ने बताया कि डॉक्टरों के गुस्से के कई कारण हैं। चिकित्सा शिक्षा को छोड़ कर प्रदेश के सभी 65 विभागों में सातवां वेतनमान 2016 से ही लागू है, लेकिन उन्होंने जब इसकी मांग की तो उन्हें धमकियां दी गईं।


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