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सामने बैठे इमरान को अफगानिस्तान में पाकिस्तान का हर पाप गिनाएंगे मोदी!


नई दिल्ली
पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की औपचारिकता तभी निभाता है जब पानी उसकी नाक तक पहुंच जाए। अभी ऐसा ही मौका है। 16-17 सितंबर को (SCO) की मीटिंग होने वाली है। पाकिस्तान ने इस मीटिंग में भारत पर अपनी बढ़त हासिल करने की चाल भी चल दी है। भारत ने उसकी यह चाल समझ ली और अब वेट एंड वॉच की स्ट्रैटिजी पर आगे बढ़ रहा है। 
पाकिस्तान का प्रस्ताव और भारत की चुप्पी
दरअसल, पाकिस्तान को पता है कि एससीओ की मीटिंग में अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का कब्जा चर्चा के केंद्र में रहेगा। उसे यह भी पता है कि अफगानिस्तान में चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंकने में उसने तालिबान की किस हद तक मदद की और अब भी कर रहा है, यह भारत समेत पूरी दुनिया को अच्छे से पता है। स्वाभाविक है कि भारत भी पाकिस्तान के काले कारनामों को उजागर करने में इस मंच का भरपूर उपयोग करेगा। ऐसे में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सामना करने में आसानी हो, इसलिए पाकिस्तान ने एक प्रस्ताव रखा है। हमारे सहयोगी अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया (ToI) को पता चला है कि पाकिस्तान ने इंडियन अथॉरिटीज को वहां जाने का न्योता दिया है ताकि भारत आतंकवाद के खिलाफ उठाए गए कदमों का जायजा ले सके। पाकिस्तान ऐसा एससीओ का प्रॉटोकॉल को पूरा करने के लिए भी कर रहा है। हालांकि, भारत ने पाकिस्तान के इस प्रस्ताव पर अभी कोई फैसला नहीं किया है। 
क्या कहा है पाकिस्तान ने
प्रस्ताव के मुताबिक, भारत को एससीओ की एंटी-टेरर एक्सरसाइज में भाग लेने के लिए अपने तीन अधिकारियों को भेजना है। हालांकि, भारत सरकार उस देश में ऐसी एक्सरसाइज में शामिल होने को लेकर उत्सुक नहीं है जिसे वो दुनियाभर में राज्य प्रायोजित आतंकवाद का गढ़ बताती रहती है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि पीएम मोदी एससीओ मीटिंग में भाग लेने दुशांबे नहीं जाएंगे बल्कि उसे वर्चुअली जॉइन करेंगे।
  SCO में क्या होगा भारत का रुख
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में भारत के रुख के मद्देनजर ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी एससीओ मीटिंग में भी तालिबान का नाम लेने से बचेंगे। दरअसल, भारत सरकार को को लगता है कि पाकिस्तान के आतंकी संगठनों से तालमेल के बावजूद तालिबान ने भारत की चिंताओं पर साकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। यही वजह है कि भारत, जमीन पर तालिबान के उठाए जाने वाले कदमों का इंतजार कर रहा है। लेकिन, इस बात की पूरी संभावना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पंजशीर में पाकिस्तानी सेना की बमबारी का मुद्दा जोर-शोर से उठाएं। 
अमेरिका पर रह सकता है फोकस
एससीओ की मीटिंग से पहले पीएम मोदी 9 सितंबर को ब्रिक्स सम्मेलन को भी वर्चुअली संबोधित करेंगे। संभवतः पीएम ब्रिक्स देशों का ध्यान भी अफगानिस्तान के ताजा हालात की तरफ खींचेंगे। एक संभावना यह भी है कि भारत एससीओ की मीटिंग में पाकिस्तान के प्रति बहुत ज्यादा गुस्से का इजहार नहीं भी करे। दरअसल, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के मुताबिक, मीटिंग में मुख्य रूप से अफगानिस्तान में अमेरिकी कार्रवाइयों पर फोकस किया जाएगा। वैसे भी अफगानिस्तान के मुद्दे पर पाकिस्तान को रूस और चीन, दोनों का समर्थन प्राप्त है। एससीओ में दबदबा रखने वाले इन दोनों देशों को लगता है कि अफगानिस्तान में स्थितरता सुनिश्चित करने के लिए तालिबान पर पाकिस्तान का प्रभाव होना जरूरी है।
  तालिबान पर भारत से अलग रूस-चीन की सोच
रूस और चीन ने अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के प्रस्ताव पर वोटिंग में भाग नहीं लिया था। भारत ने इस प्रस्ताव को यूएनएससी से घोषित आंतकियों और आतंकी संगठनों की तरफ से फैलाए जा रहे आतंकवाद को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करने के एक माध्यम के रूप में देखा था। वहीं, रूस ने इसे आंतकवादियों को भी अलग-अलग नजरिए से देखने और उन्हें अपना-पराया के खांचे में बांटने के रूप में देखा था क्योंकि प्रस्ताव में आईएसआईएस और चीन के शिनजियांग प्रांत में सक्रिय आतंकी संगठन ईटीआईएम का जिक्र नहीं था। रूस का यह भी आरोप है कि पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान में अमेरिकी असफलताओं से ध्यान बंटाकर पूरा मलबा तालिबान पर डालने की कोशिश की है।


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