Tribal Conference: ढाई लाख आदिवासियों को जुटा कर डेढ़ करोड़ वोटर्स को साधने की कवायद, जनजातीय सम्मेलन के पीछे की राजनीति समझिए
भोपाल बीजेपी की मध्य प्रदेश इकाई 15 नवंबर को भोपाल में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में आयोजित कर रही है। इस मौके पर एक () आयोजित किया ज रहा है,जिसमें प्रदेश भर से करीब ढाई लाख दिवासियों के शामिल होने की उम्मीद है। सम्मेलन को संबोधित करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी () भोपाल आ रहे हैं। बिरसा मुंडा के जन्म दिवस पर आयोजित इस समारोह को आजादी के संघर्ष में आदिवासियों के योगदान को याद करने के साथ आदिवासी कल्याण से संबंधित कई योजनाओं की घोषणा होने की उम्मीद है। बीजेपी इसे आदिवासियों को मुख्य धारा से जोड़ने की एक पहल के रूप में भले प्रचारित कर रही है, लेकिन इसके लिए जिस जोर-शोर से तैयारियां की जा रही हैं, उसे देखकर इसके राजनीतिक पहलुओं की चर्चा ज्यादा हो रही है। आदिवासियों को जीतने की रणनीति जनजातीय सम्मेलन आदिवासियों को पार्टी () के साथ वापस लाने की योजना का हिस्सा है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग का समर्थन नहीं मिलने कारण बीजेपी ने प्रदेश में लगातार 15 साल के शासन के बाद अपनी सत्ता खो दी थी। साल 2020 की शुरुआत में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथ 22 विधायकों के कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होने से 15 माह में ही कांग्रेस की सरकार अल्पमत में आकर गिर गई थी। इसके बाद बीजेपी फिर से सत्तारूढ़ हो गई और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने। डेढ़ करोड़ से ज्यादा आदिवासी वोटर : साल 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश की 7.26 करोड़ आबादी में आदिवासियों की संख्या करीब 1.53 करोड़ या 21.08 प्रतिशत है। मध्य प्रदेश विधानसभा की कुल 230 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा प्रदेश की 35 अन्य विधानसभा सीटों पर आदिवासियों के कम से 50 हजार वोट हैं। इसलिए यह वर्ग 2023 के विधानसभा चुनावों में एक बार फिर सत्ता पाने का बड़ा फैक्टर है। बीजेपी की छटपटाहट () इस वोट बैंक को अपने पाले में करने को लेकर है। 2018 में बीजेपी को सत्ता से दूर करने में बड़ी भूमिका 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 47 में से 31 सीटें जीती थीं। बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस को ज्यादा सीटों पर जीत मिलने के पीछे यह एक बड़ा कारण था। इससे पहले 2003 में जब बीजेपी ने 10 साल से चल रही कांग्रेस की दिग्विजय सरकार को सत्ता से बेदखल किया था, तब भी अनुसूचित जनजातियों की भूमिका अहम रही थी। तब बीजेपी ने अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 41 में से 37 सीटें जीती थीं। महत्वपूर्ण यह भी है कि 2003 में हुए विधानसभा चुनावों से करीब एक साल पहले वर्ष 2002 में बीजेपी ने झाबुआ में विशाल हिन्दू सम्मेलन आयोजित किया था जिसमें दो लाख से अधिक आदिवासियों ने भाग लिया था। वर्ष 2008 के विधानसभा चुनावों में जब परिसीमन के बाद अनुसूचित जाति की सीटें 41 से बढ़ाकर 47 कर दी गईं तो बीजेपी ने इनमें से 41 पर जीत हासिल की थी। हालांकि, 2013 के बाद से आदिवासी धीरे-धीरे बीजेपी से दूर होते गए। तैयारियों में कोई कसर नहीं छोड़ रही पार्टी ज्योतिरादित्य सिंधिया के वफादार कांग्रेस के कई विधायकों के बीजेपी में आने के बाद 2020 की शुरुआत में सत्ता में आई बीजेपी प्रदेश में आदिवासी मतदाताओं को मजबूती से अपने पक्ष में करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। पार्टी सूत्रों ने कहा कि इस आदिवासी सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राज्यपाल मंगू भाई पटेल, जो स्वयं एक आदिवासी हैं, और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा पारंपरिक आदिवासी टोपी पहनकर शामिल होंगे। आदिवासियों को लाने के लिए प्रदेश भर से पांच हजार से अधिक बसों को तैनात किया गया है। यहां लोगों के खाने और रहने की भी व्यवस्था की गई है। सम्मेलन की टाइमिंग भी अहम जनजातीय सम्मेलन की टाइमिंग भी बेहद महत्वपूर्ण है। कुछ महीने बाद प्रदेश में नगरीय निकाय और पंचायतों के चुनाव होने हैं। विधानसभा चुनाव 2023 के अंत में होने हैं। यानी विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी के लिए पंचायत चुनाव ही एकमात्र मौका है जब वह आदिवासियों के रुख का कलन कर सकती है और अपनी रणनीति में बदलाव कर सकती है।इसलिए आदिवासियों को साधने की रणनीति पर अभी से काम शुरू हो गया है।
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