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जब गवर्नर ने बर्खास्‍त की थी सरकार लेकिन 48 घंटे बाद कल्‍याण सिंह फिर बन गए थे सीएम

लखनऊ बात साल 2014 की है। माल एवेन्यू के अपने आवास पर कल्याण सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी। उन्हें बीजेपी में दुबारा आए कुछ महीने ही हुए थे और मेरी पॉलिटिकल रिपोर्टिंग का अनुभव भी कुछ महीनों का ही था। कल्याण ने मोदी की अगुवाई की तारीफ की और कहा कि 2014 में बीजेपी प्रचंड बहुमत से जीतेगी। मैं इस इंतजार में था कि वो बात खत्म करें और मैं सवाल दाग दूं। कल्याण चुप हुए और मैं सीधे पूछ पड़ा कि आपने तो बीजेपी को मरा हुआ सांप बताया था, अब उसे कैसे गले मे लटका रहे हैं? सवाल चुभा लेकिन कल्याण न आक्रामक हुए और न ही सवाल नजरंदाज किया। मेरे स्वर में जितनी आक्रमकता थी कल्याण का जवाबी स्वर उतना ही संयत था। बोले,' मेरी गलती थी, मुझसे पाप हुआ। मैं फिर सबसे क्षमा मांगता हूं।' इसके आगे कल्याण ने फिर वह बात दोहराई जो बीजेपी में वापसी के दौरान हुई रैली में रुंधे गले से कहा था 'मेरी यही कामना है कि मेरा शव बीजेपी के झंडे में लिपट कर जाए।' दरअसल, सहजता व शिष्टाचार कल्याण की सियासत का स्थायी भाव था। वह कहते थे, ‘सत्ता बदले के लिए नहीं है’। 1998 में तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर जगदंबिका पाल को सीएम बना दिया। 48 घंटे के भीतर पाल पैदल हो गए और कल्याण फिर सीएम बने यह जगजाहिर किस्सा है। उस समय आरएस माथुर यूपी के मुख्य सचिव थे और इकलौते अधिकारी जो एक ही साथ पाल और कल्याण दो मुख्यमंत्रियों के सचिव थे। अपनी किताब ‘क्राफ्ट ऑफ पॉलिटिक्स : पॉवर फॉर पैट्रेनज’ में माथुर लिखते हैं कि जगदंबिका पाल कोर्ट के उस फैसले की कॉपी के लिए अड़े थे, जिसमें उनकी नियुक्ति अवैध बताई गई थी। इसके बिना वह सीएम दफ्तर छोड़ने को तैयार नहीं थे। दूसरी ओर कुछ बीजेपी विधायकों का मत था कि उन्हें जबर्दस्ती कमरे से बाहर किया जाए। और जगदंबिका पाल बने एक दिन के सीएमइसी बीच कुछ प्रभावशाली लोगों ने कहा कि कल्याण सिंह के फिर से सीएम नियुक्त होने का राजभवन से आदेश जारी हो। माथुर ने इस बार में जब विधि अधिकारी एनके महरोत्रा से पूछा तो उन्होंने कहा कि जब जगदंबिका पाल की नियुक्ति ही अवैध है तो कल्याण सिंह का कार्यकाल ब्रेक ही नहीं हुआ। ऐसे में वह सीएम बने हुए हैं। बड़ा सवाल यह था कि यह संदेश मीडिया व जनता तक कैसे दिया जाए कि कल्याण की बहाली हो चुकी है। दबाव इतना था कि व्यवस्था कभी भी अराजकता की ओर बढ़ सकती थी। इस तरह से निकला रास्तामंथन के बाद रास्ता निकला और आरएस माथुर ने कल्याण सिंह से अनुरोध किया कि यदि वह कैबिनेट की बैठक कर लें तो उसका प्रेसनोट जारी कर दिया जाएगा, इससे सारा संदेश स्पष्ट हो जाएगा। कल्याण ने सहजता से यह बात स्वीकार कर ली और जगदंबिका पाल ने भी सीएम दफ्तर छोड़ दिया। एक बड़े कद का राजनेता जिसकी सीएम कुर्सी जबर्दस्ती छीन ली गई थी उनकी परिपक्वता ने सहजता से एक बड़ा संकट टाल दिया। कल्याण की बर्खास्तगी के सूत्रधार रहे तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी कल्याण के फिर कुर्सी पर बैठने के कुछ दिन बाद ही नैनीताल (तब उत्तराखंड नहीं बना था) गए। भंडारी के फैसले से नाराज कुछ कार्यकर्ताओं की भीड़ ने उनकी गाड़ी रोक ली, उन्हें आगे जाने ही नहीं दिया। स्थानीय प्रशासन ने यह कहकर हाथ खड़े कर दिए कि राज्यपाल के आने की पूर्व सूचना नहीं थी। कल्‍याण बोले- बंद कराइए तमाशा रोमेश भंडारी ने मुख्य सचिव आरएस माथुर को फोन कर नाराजगी जाहिर की। माथुर ने फोन रखा ही था कि दूसरा फोन सीएम कल्याण सिंह का था। उनके स्वर रोमेश भंडारी से ज्यादा तल्ख थे। उन्होंने साफ शब्दों में कहा, ‘यह तमाशा तत्काल बंद कराइए, पद की गरिमा का सम्मान हर-हाल में होना चाहिए।’ कल्याण के तेवर से अफसरों के पसीने आ गए और कुछ ही देर में भंडारी के काफिले का रास्ता साफ हो गया।


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