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असली आजादी का मतलब क्या होता है ? जानिए अपने अधिकार और कर्तव्य

नई दिल्लीहमारा संविधान सभी नागरिकों को मूल अधिकारों की गारंटी देता है। हमसे ये अधिकार कोई नहीं ले सकता। यहां तक कि संविधान संशोधन के जरिये भी मूल अधिकार नहीं छीने जा सकते। वाजिब और तर्कपूर्ण कानून के दायरे में ही कुछ मौलिक अधिकार को निलंबित किया जा सकता है। लेकिन क्या हमें इन सभी मूल अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी है? क्या हमें यह भी पता है कि नागरिक के तौर पर देश के लिए हमारी ड्यूटी क्या हैं? आजादी के 75 साल पूरे होने पर 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के मौके पर एक्सपर्ट्स से बात करके इस बारे में जानकारी दे रहे हैं राजेश चौधरी: यहां समझिए अपने अधिकार की रक्षा कैसे करें ?संविधान में सबको मान-सम्मान के साथ जीने का अधिकार दिया गया है। केंद्र और राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि सबको ये हक मिलें। किसी नागरिक को बिना कानूनी वजह इससे वंचित नहीं किया जा सकता। हालांकि ये पूर्ण अधिकार नहीं हैं। अगर किसी को लगता है कि उसे बेवजह इन अधिकारों से वंचित किया जा रहा है तो वह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में रिट दाखिल कर सकता है। संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद-12 से लेकर 35 तक इसका जिक्र मिलता है। 6 मूल अधिकार, संविधान में कहां-क्या अनुच्छेद 14-18 : बराबरी का अधिकार अनुच्छेद 17-22 : आजादी अधिकार अनुच्छेद 23-24 : शोषण के खिलाफ अधिकार अनुच्छेद 25-28 : धार्मिक आजादी का अधिकार अनुच्छेद 29-30 : सांस्कृतिक और शिक्षा के अधिकार अनुच्छेद-32 : कानूनी उपचार का अधिकार यह है हमारी आजादी का असली मतलबखुलकर जीने बोलने की आजादी- संविधान के अनुच्छेद-14 में बताया गया है कि कानून के सामने सब बराबर हैं। लिंग, जाति, धर्म या फिर क्षेत्र के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। अनुच्छेद-15 किसी भी तरह के भेदभाव पर रोक लगाता है। वहीं अनुच्छेद-17 छुआछूत को रोकता है। इसके अलावा अनुच्छेद-19 हर नागरिक को विचार और अभिव्यक्ति की आजादी देता है। इसके तहत हर नागरिक अपने विचार रख सकता है। प्रेस की आजादी भी इसी अनुच्छेद से मिलती है। संविधान के मूल अधिकारों में यह बेहद अहम अधिकार है। इसकी वजह से ही लोग शांतिपूर्ण तरीके से धरना-प्रदर्शन कर सकते हैं। इसी अधिकार के तहत हम अपनी विचारधारा को प्रकट करते हैं। कोई भी शख्स कानून के दायरे में सरकार की किसी भी नीति पर अपनी राय दे सकता है। इसी से जुड़े फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इंटरनेट के जरिये विचार अभिव्यक्ति और कारोबार का अधिकार संवैधानिक तौर पर संरक्षित है। कारोबार और पेशे में इंटरनेट अहम भूमिका निभा रहा है। इस तरह इंटरनेट के जरिये व्यवसाय और व्यापार का अधिकार संविधान के अनुच्छेद-19 (1) (जी) के तहत संरक्षित है। लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी पर वाजिब रोक भी लगाई जा सकती है। अनुच्छेद-19 (2) में इसके बारे में बताया गया है। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश की अखंडता और संप्रभुता को चुनौती नहीं दी जा सकती। अदालत की अवमानना नहीं की जा सकती या फिर किसी दूसरे की मानहानि नहीं कर सकते। इसके लिए एक लक्ष्मण रेखा बनाई गई है। विचार अभिव्यक्ति का अधिकार वहां खत्म हो जाता है जहां कानून का उल्लंघन होने लगे या देश की अखंडता के खिलाफ बातें होने लगें। इस अधिकार के नाम पर माहौल नहीं बिगाड़ा जा सकता। अगर कोई शख्स नफरत फैलाने वाले लेख लिखे या नफरत फैलाने के लिए कोई दूसरा माध्यम अपनाए तो उसके खिलाफ केस दर्ज हो सकता है। किसी की छवि खराब करनेवाले पर मानहानि का केस हो सकता है। अनुच्छेद-21 राइट टु लाइफ एंड पर्सनल लिबर्टीहमारी ज़िंदगी, हमारा मान- अनुच्छेद-21 राइट टु लाइफ एंड पर्सनल लिबर्टी यानी जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार देता है। यह सबसे अहम अधिकार है और इसका दायरा भी काफी बड़ा है। जीवन के अधिकार में मान-सम्मान और गरिमा के साथ जीने का हक मिलता है। सेहत का अधिकार भी इसमें ही शामिल है, जो हमें साफ हवा और साफ पानी का हक देता है। यह अधिकार भी कानून के दायरे में ही मिलता है। शिक्षा का अधिकार भी यही अनुच्छेद देता है। पढ़ना बच्चों का हक है तो यह सरकार की जिम्मेदारी है कि उन्हें इसकी सुविधा दे। सीनियर ऐडवोकेट लाहोटी के मुताबिक, 'सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर इस मूल अधिकार के बारे में बात की है। कोर्ट ने कहा था कि जीवन के अधिकार का मतलब सम्मानजनक जीवन होना चाहिए। इसके साथ ही प्राइवेसी के हक को भी इसी दायरे में रखा गया। यहां तक कि सोने के हक को भी जीवन के अधिकार का हिस्सा माना गया है।' सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस आर.के. अग्रवाल, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस अब्दुल नजीर ने प्राइवेसी के अधिकार के मामले में एक साथ लिखे फैसले में कहा था कि जीवन और व्यक्तिगत आजादी (लाइफ एंड पर्सनल लिबर्टी) अलग नहीं किए जाने वाला मूल अधिकार है। यह संविधान बनने के बाद नहीं मिला बल्कि इसे संविधान ने कुदरती हक माना है। प्राइवेसी का अधिकार संरक्षित अधिकार है जो व्यक्तिगत आजादी और जीवन के अधिकार के तहत अनुच्छेद-21 में मिलता है। संविधान में मानवीय गरिमा को ऊपर रखा गया है और निजता उसी में है। इसमें व्यक्तिगत घनिष्ठता, पारिवारिक जीवन, शादी, बच्चे पैदा करना, सेक्शुअल पसंद आदि सब कुछ शामिल है। किसी व्यक्ति की चाहत, उसका लाइफ स्टाइल स्वाभाविक तौर पर उसकी प्राइवेसी है। यही हक विविधता वाली संस्कृति को भी जिंदा रखे हुए है। इमरजेंसी में जब मूल अधिकार छीने जाएं...इमरजेंसी में अगर किसी के मूल अधिकार पर रोक लगाई जाती है तो ऐसा तर्क संगत कानून के तहत ही किया जा सकता है। इन दिनों जैसे कोरोना को फैलने से रोकने के लिए लोगों की आवाजाही पर रोक लगाई गई। ऐडवोकेट एमएल लाहोटी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने मेनका गांधी के मामले में 1978 में दिए फैसले में साफ किया था कि किसी भी नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार कानून के तहत लिया जा सकता है लेकिन वह कानून निष्पक्ष, उचित और तर्कसंगत होना चाहिए। इन तीनों शब्द के काफी मायने हैं। ऐसा होने पर वह शख्स सीधे हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है, यह कोर्ट देखेगा कि कानून उस दायरे में है या नहीं। लेकिन उस शख्स को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में रिट के जरिये गुहार लगाने का अधिकार बना रहेगा। सुप्रीम कोर्ट संविधान का संरक्षक है। अगर किसी के मूल अधिकार का उल्लंघन होता है तो वह शख्स निचली अदालत नहीं बल्कि सीधे सुप्रीम कोर्ट में जाने के लिए अनुच्छेद-32 और हाई कोर्ट के लिए अनुच्छेद-226 का सहारा ले सकता है। अगर मामला जनहित से जुड़ा है तो अनुच्छेद-32 और 226 के तहत जनहित याचिका (PIL) दाखिल की जा सकती है। याचिकाकर्ता को बताना होता कि इससे आम आदमी का हक कैसे प्रभावित हो रहा है। ऐसे मामले में सरकार को प्रतिवादी बनाया जाता है। एक चिट्ठी भी बन सकती है PILसाल 1982 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी.एन. भगवती की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि आम लोगों के अधिकारों को नकार नहीं सकते। अगर मामला लोकहित से जुड़ा हो तो कोई भी अदालत में आ सकता है। अगर कोई अदालत नहीं आ सकता तो वह कोर्ट को चिट्ठी भी लिख सकता है। अगर कोर्ट यह समझे कि मामला जनहित से जुड़ा है तो कोर्ट उसे जनहित याचिका में तब्दील कर सकता है। लेकिन नागरिकों की ड्यूटी क्या है?संविधान में मूल कर्तव्य बाद में जोड़े गए। केंद्र सरकार ने मूल कर्तव्यों के लिए स्वर्ण सिंह समिति बनाई थी। इसकी सिफारिश पर संसद ने साल 1976 में 42 वें संविधान संशोधन के जरिये मूल कर्तव्य जोड़ दिए गए। संविधान में अनुच्छेद-51 ए के तहत मूल कर्तव्य जोड़े गए। इसके बाद 86वें संशोधन में कर्तव्यों की संख्या बढ़ा दी गई। नागरिकों की ड्यूटी है कि वे संविधान सहित देश के सभी राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करेंगे। देश की विरासत बचाए रखने में मदद करेंगे। भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को बरकरार रखेंगे। देश की रक्षा के लिए जरूरत पड़ने पर खुद आगे आएंगे। विविधतावाली संस्कति को बचाएंगे। साथ ही सुरक्षा में सहायक होंगे। भाईचारा बनाए रखेंगे। पर्यावरण, नदी, जंगल और वन्य जीवों की भी रक्षा करेंगे। वैज्ञानिक सोच का विकास करेंगे। पब्लिक प्रॉपर्टी की रक्षा करेंगे। मूल अधिकारों से जुड़े अहम फैसलेसीवर सफाई से जुड़ा मामला- सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में एक ऐतिहासिक फैसला दिया। कोर्ट ने हाथों से गंदगी की सफाई करने के बारे में निर्देश जारी किए। साथ ही कहा था कि सुरक्षा उपाय अपनाए बिना सीवर लाइन में किसी मजदूर को न उतारा जाए। कानून का उल्लंघन करने वालों को सख्त सजा का भी प्रावधान किया गया। ऐसा होने पर हर मौत के मामले में 10 लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है। इस मामले में याचिकाकर्ता वेडवाडा विल्सन ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा था कि इंसान द्वारा गंदे नाले में उतरकर हाथों से गंदगी की सफाई करना समानता और जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। गिरफ्तारी के दौरान यह अधिकार- अगर किसी शख्स ने कानून तोड़ा है तो उसकी आजादी पर रोक लगाई जा सकती है। उसे गिरफ्तार किया जा सकता है। 25 अप्रैल 1994 को सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी के मामले में अहम गाइडलाइंस दीं। कोर्ट ने जोगेंद्र कुमार बनाम स्टेट ऑफ यूपी के केस में मानवाधिकार के मद्देनजर कहा कि हर इंसान को अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है। जब भी किसी शख्स की गिरफ्तारी हो तो उसे गिरफ्तारी के बारे में अपने रिश्तेदार या किसी दोस्त या जिसे वह चाहे, सूचना देने का अधिकार मिलना चाहिए। पुलिस की ड्यूटी है कि उस शख्स को गिरफ्तारी की वजह बताए और साथ ही उसके अधिकारों की जानकारी दे। जब भी गिरफ्तारी हो तो थाने की डायरी में एंट्री जरूर हो। गिरफ्तार शख्स के जीवन के अधिकार की रक्षा हो। साड्डा हक... अनुच्छेद- 19 के तहत हर नागरिक को विचार और अभिव्यक्ति का अधिकार मिला हुआ है। प्रेस की आजादी भी इसी के दायरे में है। संविधान के अनुच्छेद-19 (1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है। -रमेश गुप्ता, सीनियर ऐडवोकेट अनुच्छेद-21 राइट टु लाइफ एंड पर्सनल लिबर्टी यानी जीवन और आजादी का अधिकार। मूल अधिकारों में अनुच्छेद-21 सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसका दायरा काफी ज्यादा है। जीवन के अधिकार में मान-सम्मान के साथ जीने का हक शामिल है। एम.एल. लाहौटी, सीनियर ऐडवोकेट सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट संविधान का संरक्षक है। अगर किसी के मूल अधिकार का उल्लंघन होता है तो वह शख्स सुप्रीम कोर्ट में जाने के लिए अनुच्छेद-32 और हाई कोर्ट में अनुच्छेद-226 का सहारा ले सकता है। इस मामले में निचली अदालत नहीं जा सकते, सीधे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाते हैं। -कमलेश जैन, ऐडवोकेट संविधान में अनुच्छेद-51 ए के तहत मूल कर्तव्य बताए गए हैं। बाद में 86वें संशोधन में कर्तव्यों की संख्या बढ़ाई गई थी। नागरिकों की ड्यूटी है कि वे संविधान सहित देश के तमाम राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करेंगे। विरासत की रक्षा करेंगे। संप्रभुता, एकता और अखंडता को बरकरार रखेंगे। -के.के. मनन, सीनियर ऐडवोकेट संविधान में हर नागरिक को मान सम्मान के साथ जीने का अधिकार दिया गया है। सरकार की जिम्मेदारी है कि लोगों के मूल अधिकारों की रक्षा करे। इस तरह मूल अधिकारों से किसी नागरिक को बिना कानूनी प्रावधान के वंचित नहीं किया जा सकता। -संजय पारिख, सीनियर ऐडवोकेट सुप्रीम कोर्ट


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