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आरक्षण के लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया ओबीसी, EWS की आय सीमा का गणित, जानें क्या बोली सरकार

नई दिल्ली केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के निर्धारण के लिए आठ लाख रुपये आय का मापदंड ओबीसी क्रीमी लेयर की तुलना में कहीं अधिक सख्त है। सरकार ने कहा कि सबसे पहले ईडब्ल्यूएस की शर्त आवेदन के वर्ष से पहले के वित्तीय वर्ष से संबंधित है जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में क्रीमी लेयर के लिए आय मानकों की शर्तें लगातार तीन वर्षों के लिए सकल वार्षिक आय पर लागू होती है। सरकार ने हाल ही में ईडब्ल्यूएस निर्धारण के मापदंडों पर पुनर्विचार के लिए गठित तीन-सदस्यीय समिति की रिपोर्ट स्वीकार की है। पैनल ने कहा, ‘‘समिति, इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि ईडब्ल्यूएस के लिए 8 लाख रुपये के कट-ऑफ का मानदंड ओबीसी क्रीमी लेयर की तुलना में बहुत अधिक कठोर हैं। पैनल की रिपोर्ट शीर्ष अदालत को सौंपी गई है, जो मौजूदा शैक्षणिक वर्ष से नीट-पीजी में प्रवेश में ईडब्ल्यूएस कोटा लागू करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली छात्रों की याचिका पर सुनवाई कर रही है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘दूसरी बात, ओबीसी क्रीमी लेयर तय करने के मामले में, वेतन, कृषि और पारंपरिक कारीगरों के व्यवसायों से होने वाली आय को विचार से बाहर रखा गया है, जबकि ईडब्ल्यूएस के लिए 8 लाख रुपये के मानदंड में खेती सहित सभी स्रोतों से आय शामिल है।’ समिति ने कहा, ‘‘इसलिए, एक ही कट-ऑफ संख्या होने के बावजूद, उनकी संरचना अलग-अलग है और इसलिए, दोनों को समान नहीं कहा जा सकता है।’’ ईडब्ल्यूएस और ओबीसी क्रीमी लेयर के लिए आय को कैसे परिभाषित किया जाता है, इसमें महत्वपूर्ण अंतरों का उल्लेख करते हुए, पैनल ने कहा कि ओबीसी के बीच ‘क्रीमी लेयर’ के तहत योग्य होने के लिए, घरेलू सकल आय लगातार तीन वर्षों तक प्रति वर्ष 8 लाख रुपये से अधिक होनी चाहिए, जबकि ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लिए पात्र होने के लिए, लाभार्थी की घरेलू आय पिछले वित्तीय वर्ष में 8 लाख रुपये से कम होनी चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों - ग्रामीण, शहरी, मेट्रो या राज्यों के लिए अलग-अलग आय सीमाएं होने से जटिलताएं पैदा होंगी, विशेष रूप से यह देखते हुए कि लोग नौकरियों, अध्ययन, व्यवसाय आदि के लिए देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में तेजी से बढ़ रहे हैं। अलग-अलग क्षेत्रों के लिए आय की भिन्न-भिन्न सीमाएं सरकारी अधिकारियों और आवेदकों दोनों के लिए एक दु:स्वप्न के समान होगा।”


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