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आज नहीं होगा गोटमार मेला, 500 पुलिसकर्मी रहेंगे तैनात

Publish Date: | Wed, 19 Aug 2020 04:10 AM (IST)

कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर प्रशासन ने लिया फैसला

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गोटमार मेले की तैयारी को लेकर बनाई गई बेरीकेटिंग

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कलेक्टर सौरभ सुमन ने लिया तैयारियों का जायजा

छिंदवाड़ा। विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले का आयोजन बुधवार को होगा। कोरोना वायरस संक्रमण के मद्देनजर इस साल प्रशासन ने पत्थरबाजी के खेल पर प्रतिंबध लगाया है। इस बार सिर्फ औपचारिकता के तौर पर जाम नदी के किनारे स्थित देवी मंदिर में झंडे की पूजा की जाएगी। कलेक्टर सौरभ सुमन और एसपी विवेक अग्रवाल ने मेले की तैयारी को लेकर बुधवार को दौरा किया। श्री सुमन ने बताया कि वर्तमान सुरक्षा को लेकर वो पूरी तरह संतुष्ट हैं। एसपी विवेक अग्रवाल ने बताया कि मेला स्थल से सारे पत्थर एक दिन पहले हटवा लिए गए है, वहीं तीन स्तर पर सुरक्षा व्यवस्था रहेगी। जिसमें सात एसडीओपी, दो एएसपी, दस टीआई, 30 एसआई, 50 एएसआई, 500 एसएफ, होमगार्ड फारेस्ट और जिला बल के जवान तैनात रहेंगे। जिले के अलावा पड़ोसी जिले की पुलिस से भी मदद ली गई है। सुरक्षा व्यवस्था तीन स्तर की रहेगी। इसके लिए बेरीकेटिंग की गई है और जगह जगह पर पुलिस को तैनात किया गया है।

सालों पुरानी है परंपरा

गोटमार मेले की शुरुआत 17वीं इसवी के करीब मानी जाती है। महाराष्ट्र की सीमा से लगे पांढुर्णा में हर साल भादो मास के कृष्ण पक्ष पक्ष में अमावस्या को पोला त्योहार के दूसरे दिन पांढुर्णा और सावरगांव के बीच बहने वाली जाम नदी पर आयोजान होता है। जहां देवी का झंडा गाड़ने के बाद दोनों गांव के लोग एक दूसर पर पत्थर फेंकते हैं। इस मेले में हर साल पथराव में कई लोग घायल हो जाते हैं, अब तक 13 लोगों की मौत भी हो चुकी है। इस बार पोला 18 अगस्त को है, लिहाजा इस बार 19 अगस्त बुधवार को गोटमार मेले का आयोजन किया जा रहा है। मेला देखने हर साल जिले के बाहर से भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं, लेकिन इस बार सिर्फ औपचारिकता निभाई जाएगी। मेले के आयोजन के संबंध में कई प्रकार की किवंदतियां हैं। इन किवंदतियों में सबसे प्रचलित और आम किवंदती यह है कि सावरगांव की एक आदिवासी कन्या का पांढुर्णा के किसी लड़के से प्रेम हो गया था। दोनों ने चोरी छिपे प्रेम विवाह कर लिया। पांढुर्णा का लड़का साथियों के साथ सावरगांव जाकर लड़की को भगाकर अपने साथ ले जा रहा था। उस समय जाम नदी पर पुल नहीं था। नदी में गर्दन भर पानी रहता था, जिसे तैरकर या किसी की पीठ पर बैठकर पार किया जा सकता था और जब लड़का लड़की को लेकर नदी से जा रहा था तब सावरगांव के लोगों को पता चला और उन्होंने लड़के व उसके साथियों पर पत्थरों से हमला शुरू किया। जानकारी मिलने पर पहुंचे पांढुर्णा पक्ष के लोगों ने भी जवाब में पथराव शुरू कर दी। पांढुर्णा पक्ष एवं सावरगांव पक्ष के बीच इस पत्थरों की बौछारों से इन दोनों प्रेमियों की मृत्यु जाम नदी के बीच ही हो गई। दोनों प्रेमियों की मृत्यु के पश्चात दोनों पक्षों के लोगों को अपनी शर्मिंदगी का एहसास हुआ और दोनों प्रेमियों के शवों को उठाकर किले पर मां चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। संभवतः इसी घटना की याद में मा? चंडिका की पूजा-अर्चना कर गोटमार मेले का आयोजन होता है।

Posted By: Nai Dunia News Network

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