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पापा कहीं यह कोरोना तो नहीं? बच्चों के इन मासूम सवालों का बताइए क्या जवाब दें!

बेंगलुरु शहर में रहने वाले एक शख्स रितेश बंगलानी ने ट्वीट किया कि उनका 8 साल का बच्चा पूरे दिन सूंघ कर यह जानने की कोशिश करता है कि उसकी गंध पहचानने की क्षमता खत्म तो नहीं हो गई है। ऐसा नहीं है तो वह वायरस के संपर्क में नहीं आएगा। रितेश ने अपने ट्वीट में लिखा कि यदि उसे गर्मी लगती है तो वह अपना टेंपरेचर चेक करने को कहता है। यदि उसके पैर दौड़ने से दर्द करते हैं तो वह पूछता है कि कहीं ये कोरोना के लक्षण तो नहीं हैं। रितेश का यह ट्वीट काफी वायरल हो रहा है। इसकी वजह है कि इसमें कई पेरेंट्स बच्चों में इसी तरह की परेशानियों से जूझ रहे हैं और बच्चों में कोरोना के डर से कन्फ्यूज हैं। बच्चे इस वायरस से काफी डिस्टर्ब हो रहे हैं साइक्लोॉजिस्ट और काउंसलर्स का कहना है कि महामारी बढ़ने से मुश्किलें बढ़ती जा रही है और बच्चे इस वायरस से काफी डिस्टर्ब हो रहे हैं। चाइल्डराइट ट्रस्ट के निदेशन जी. नरसिम्हा राव ने कहा कि हमारे पास एक ऐसे पेरेंट का फोन आया जिसका कहना था कि उनका 8वीं क्लास में पढ़ने वाला बेटा अपने दोस्त के पिता के कोरोना पॉजिटिव होने से इतना डर गया कि वह बिस्तर गीला कर दे रहा है। दो बहनों का फोन आया जिसमें उनका कहना था कि टीवी पर जब भी कोरोना से जुड़ी खबर आती है तो वे कंबल में अपना मुंह छुपा लेती हैं। बच्चों के कोरोना संक्रमित होने की आशंका बढ़ी एक करीबी मित्र की छह साल की बेटी जब भी घर के बाहर कदम रखती है तो वह जोर-जोर से रोने लग जाती है। उसका कहना है कि घर के बाहर कोरोना है। वहीं ट्वीट करने वाले रितेश का कहना है कि उनका बच्चा पूछता है कि जिन बच्चों के पेरेंट्स जिंदा नहीं है वे कैसे रहते होंगे। निमहेंस के डिपार्टमेंट ऑफ चाइल्ड एंड एडोलेसेंट साइकेट्री के हेड डॉ. जॉन विजय सागर का कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर में परिवार में एक साथ कई लोग बीमार पड़ रहे हैं। ऐसे में बच्चों के कोरोना संक्रमित होने की आशंका बढ़ गई है। बच्चों में दिख रहे बिहेवियरल बदलाव ऐसी स्थिति में बच्चों में बडे़ लोगों की तुलना में अधिक एंग्जाइटी देखने को मिल रही है। भले ही बड़े लोग बच्चों के साथ कुछ शेयर ना करें लेकिन बच्चे इमोशनल रूप से ऐसे हैं कि उनमें अपने आसपास के वातावरण का सीधा प्रभाव पड़ता है। साइक्लोजिस्ट और साइकाइट्रिस्ट बच्चों में एंग्जाइटी के अलावा इरिटेट होना, गुस्सा, आक्रामकता, सोने संबंधी दिक्कत, मूड स्विंग जैसे बिहेवियरल बदलाव देख रहे हैं। रिच क्लिनिक के डॉ. यशस्विनी कामराजू का कहना है कि इसके पीछे बड़ा कारण रूटीन का नहीं होना और स्कूलों का बंद होना भी है। यंग बच्चों में अधिक स्क्रीन टाइम से उनमें गैजेट एडिक्शन भी बढ़ रहा है।


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