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सिस्टम फेल,जुगाड़ से ही उम्मीद: बेड-ऑक्सिजन के लिए कोरोना मरीज लेकर दूसरे राज्यों में दौड़ रहे बदहवास परिजन

नई दिल्लीकोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने कोहराम मचा दिया है। अस्पतालों में न बेड हैं, न ऑक्सिजन। ऐसे में अपनों की जान बचाने के लिए लोग दूसरे प्रदेशों में भी बेड का जुगाड़ रहे हैं और जुगाड़ होते ही तमाम परेशानियां झेलकर मरीज को अस्पताल पहुंचा रहे हैं। इसमें जो अनाप-शनाप खर्च हो रहा है उसकी तो बात ही छोड़ दें, कई बार अस्पताल में ठगी का मामला भी सामने आ जाता है। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ मामलों के बारे में... केस नंबर 1- दिल्ली के लक्ष्मी नगर निवासी राजकुमार जायसवाल की पत्नी माया को कफ की शिकायत थी। उन्हें ऑक्सिजन की जरूरत थी। मगर, दिल्ली में ऑक्सिजन की कमी के कारण वह अपनी पत्नी को लेकर भटकते फिर रहे थे। इसी दौरान उन्हें एक एंबुलेंस ड्राइवर मिला। उसने उन्हें मेरठ के प्राइवेट हॉस्पिटल में ऑक्सिजन दिलाने का वादा किया। उस पर भरोसा करके उन्होंने 18 अप्रैल को अपनी पत्नी माया को भर्ती करा दिया। आरोप है कि इसके बाद से हॉस्पिटल के कर्मचारी कभी माया को ऑक्सिजन सिलिंडर लगा देते तो कभी हटा दिया जाता था। लापरवाही और पर्याप्त सुविधा के अभाव में महिला की मौत हो गई। केस नंबर 2- विजय विहार के एक परिवार ने बताया कि दिल्ली के हालात को देखकर उन्होंने अलवर के एक सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल पेशंट को शिफ्ट करने का जुगाड़ लगाया। वहां पहुंचे तो मेन गेट बंद था। मगर, पीछे वाला गेट खुला हुआ था। अस्पताल ने बेड के नाम पर मनमाने दाम भी वसूले। कोई दूसरा रास्ता नहीं था। परिजन पूरी तरह बेबस हो चुके थे। उन्होंने कहा कि कोरोना के इलाज के नाम पर छोटे अस्पताल और नर्सिंग होम में पहले तो मना कर दिया जाता है। फिर इलाज के नाम पर मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं। मगर उन्हें सुविधाएं देने में अस्पताल काफी पीछे हैं। न तो सीटी स्कैन है और न लैब। मामूली खून की जांच के लिए मरीज के परिजनों के हाथों सैंपल बाहर भेजा जा रहा है। कुछ अस्पतालों में ऑक्सिजन पाइपलाइन तक नहीं है। केस नंबर 3- राजीव दिल्ली में रहते हैं, गुड़गांव में जॉब करते हैं। रविवार को फीवर आया। हल्का कफ भी था। पहले समझा वायरल है। राजीव के पिता में भी लक्षण दिखने लगे। दोनों ने कोविड की आरटी-पीसीआर जांच कराने का सोचा। हर जगह तीन दिन बाद अपॉइंटमेंट मिल रहा था। इस बीच, पिता की तबीयत बिगड़ गई। डॉक्टर ने सलाह दी कि उन्हें जल्द से जल्द किसी अस्पताल में भर्ती हो जाना चाहिए। दिल्ली-एनसीआर के कई अस्पतालों ने उन्हें वापस लौटा दिया। मथुरा के एक निजी अस्पताल में मुश्किल से उन्हें बेड मिल गया। कई तरह की जांच से लेकर एक बार ऑक्सिजन का इंतजाम खुद करना पड़ा। केस नंबर 4- दिल्ली में एक शख्स कोरोना पीड़ित हो गए। उनका ऑक्सिजन लेवल कम हो गया तो खाली बेड वाले अस्पताल की जानकारी जुटाने लगे। उन्हें कहीं से उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखाई दी तो हरियाणा में अपने रिश्तेदारों को फोन किया। रिश्तेदारों ने झज्जर के एम्स में एक ऑक्सिजन बेड का जुगाड़ किया और मरीज को दिल्ली से कैब में झज्जर ले जाया गया। इसमें प्रक्रिया में उनकी जेब तो ढीली हुई है, परेशानी हुई सो अलग। केस नंबर 5- उत्तर प्रदेश अयोध्या में रहने वाले लालजी यादव और उनकी पत्नी रेखा तबीयत बिगड़ने पर कोई हॉस्पिटल बेड नहीं मिला। इसके बाद उनके परिजनों ने यूपी के अलग-अलग शहरों में हॉस्पिटल बेड की तलाश की लेकिन कहीं भी सफलता नहीं मिली। रेखा के छोटे भाई रवि शंकर यादव पश्चिम बंगाल के हुबली के मोगरा इलाके में रहते हैं। उनके कहने पर 48 साल की रेखा और उनके 50 साल के पति लालजी यादव ऐंबुलेंस से पश्चिम बंगाल पहुंचे। रवि शंकर ने बताया कि 22 अप्रैल यानी गुरुवार को रेखा और लालजी ने यूपी से सफर शुरू किया और शुक्रवार रात वह हुबली पहुंचे। जहां उन्हें पास के चिनसुर में एक प्राइवेट नर्सिंग होम में एडमिट कराया गया। 1600+ कोविड बेड खाली? फोन करने पर मिलते नहीं दिल्ली के अस्पतालों में कोविड बेड के लिए लोग बेहद परेशान हैं। बेड ढूंढने के लिए बनाई गई ऐप/ डैशबोर्ड में खाली बेड देखने के बाद अपनों की जिंदगी के लिए उनकी उम्मीद एक पल के लिए जागती है, मगर दिनभर फोन पर लगे होने के बाद भी जवाब नहीं मिलने ने निराशा ही हाथ आ रही है। दिल्ली कोरोना ऐप में बुधवार को 1,600 से ऊपर बेड खाली नजर आ रहे थे और आईसीयू के 21, मगर इन अस्पतालों से संपर्क कर पाना बहुत मुश्किल काम था। ज्यादातर नंबर हमेशा बिजी देते हैं। कुछ स्विच्ड ऑफ हैं, कुछ तो आउट ऑफ सर्विस हैं। जिन अस्पतालों ने फोन उठाए हैं, उन सबका कहना है कि ऑक्सिजन का स्टॉक नहीं है। मजबूरन राजधानी के लोग दूसरे राज्यों में बेड खंगाल रहे हैं। सोसायटी लेवल पर भी हो रहा जुगाड़ उधर, अस्पतालों में बेड के अकाल का सामना करने के लिए व्यक्तिगत सत्तर पर जुगाड़ किया जा रहा है तो दूसरी तरफ मिल-जुलकर भी कुछ विकल्प तलाशे जा रहे हैं। सोसायटी में कोरोना के कहर को देखते हुए ग्रेनो वेस्ट स्थित ऐस सिटी के स्थानीय लोगों ने एक पहल की है। जैसे ही कोरोना का कहर बढ़ा सिटी के लोगों ने बैठक कर एक आइसोलेशन सेंटर बनाने का खाका तैयार किया। महीने की शुरुआत में ही सेंटर को बनाने का काम शुरू हुआ और बुधवार को आइसोलेशन सेंटर शुरू हो गया। सिटी के सभी लोगों ने चंदा लगाकर ऑक्सिजन सिलेंडर, पीपीई किट, जरूरी दवाएं, पल्स ऑक्सिमीटर सहित अन्य उपकरणों को खरीदकर आइसोलेशन सेंटर के लिए रखा है। जान बची तो आर्थिक तंगी कुल मिलाकर हालत यह है कि कोरोना के आगे सरकार और सिस्टम बहुत हद तक फेल हो चुके हैं जिसकी कीमत मरीजों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है। जो मरीज जुगाड़ से दूसरे राज्यों के अस्पतालों में जुगाड़ से बेड पा भी ले रहे हैं, उनकी भी जिंदगी की कोई गारंटी नहीं और बच भी गए तो आर्थिक तंगी का दंश लंबे समय तक सताता रहेगा।


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