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शहाबुद्दीन के खौफ की कहानी, जब चंदा बाबू के दो बेटों को तेजाब से नहला दिया था

सिवान: कई ऐसे किस्से हैं RJD के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन से भी जुड़े हैं। इनमें सबसे खौफनाक किस्सा है सिवान के तेजाब कांड का। उस वक्त शहाबुद्दीन की जिले में ही नहीं बल्कि पूरे बिहार में तूती बोलती थी। जब दो सगे भाइयों को तेजाब से नहलाया था शहाबुद्दीन ने 16 अगस्त 2004 की शाम थी। सीवान के गौशाला रोड पर राजीव किराना स्टोर में सात-आठ युवकों ने धावा बोल कैश लूट लिया। भरे बाजार में ऐलान किया कि कोई कुछ बोला तो, अंजाम बहुत बुरा होगा। दुकान में बैठे राजीव ने विरोध किया तो उसे पीटा गया। खतरा देख गिरीश बगल के बाथरूम में घुसा और एसिड की बोतल दिखाकर बदमाशों को डराने लगा। बदमाश भागे, मगर घंटेभर में बड़ी तादाद में लौटे। इस बार गिरीश, राजीव और सतीश को प्रतापपुर उठा ले गए। जहां चारों तरफ घने ईख के खेत। वहां एक बगीचे में गिरीश और सतीश को पेड़ से बांध दिया। राजीव को ईख के खेत में पिस्टल के दम पर बंधक बना लिया गया। तब तक सांसद शहाबुद्दीन वहां हथियारों से लैस शूटरों के साथ पहुंचे। और वहां लगाई गई कुर्सी पर बैठ गए। फरमान जारी किया, नहला दो इन लोगों को एसिड से। शहाबुद्दीन के हुक्म पर सगे भाइयों को तेजाब से नहलाया गया आदेश मिलते ही गिरीश और सतीश पर तेजाब डाला जाने लगा। चीखें गूंजने लगीं। दोनों छटपटाते रहे। मगर किसी को रहम नहीं आया। मौत के साथ मदद की गुहार लगाते लफ्ज़ खामोश हो गए। अब सिर्फ कंकाल बचे थे और शरीर पर कहीं-कहीं मांस का लोथड़ा। राजीव कांपकर आंखें बंद कर लेता था। चंद्रकेश्वर प्रसाद ऊर्फ चंदा बाबू सन्न रह गए चन्द्रकेशवर प्रसाद इन घटना से अनजान पटना अपने भाई से मिलने आए थे। लगातार उनके मोबाइल पर अनजान नम्बर से घंटियां बजने लगी। कोई फिरौती की रकम मांगता तो कोई घर लिखवाने की बात करता। कोई यह कहता कि शहर छोड़ दो। तीन दिनों तक राजीव ईख में ही हथियारबन्दों से घिरा रहा। तीसरे दिन सुबह हथियारबन्दों को झपकी आई, तो राजीव भाग निकला। बदहवास घर पहुंचा। जब वारदात के बारे में बताया तो पिता चन्द्रकेशर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू निढाल होकर गिर पड़े। पुलिस रिपोर्ट लिखने को तैयार नहीं थी दो बेटों को तेजाब से नहला कर मार देने की कल्पना भर से वे कांप जाते। थाने पहुंचे। रपट लिखवाई। रपट में शहाबुद्दीन का नाम आते ही थानेदार की कलम रुक-सी गई। कहा- सोच लीजिए। आप शहर छोड़ क्यों नहीं देते? गिरते-पड़ते वे शाम में चादर से मुंह ढके एसपी के पास गए, तो मिलने से इनकार कर दिया गया। डीआईजी से मुलाकात की। वहां से निर्देश आया कि रपट लिखो। जब थानेदार ने सुरक्षा की बात कही तो डीआईजी सोच में डूब गए। फिर फोन आया, तुम्हारी सुरक्षा में तो वहां थाने की पुलिस है और चंदा बाबू के लिए बीएमपी के तीन कमांडों भेज दूंगा। सारे दुकानदार खौफ से हट गए थे पीछे रपट लिखी गई। जांच हुई तो दुकानदारों ने कहा कि उन लोगों ने कुछ देखा ही नहीं। साहेब का खौफ ऐसा कि बाजार में कोई गवाह तक नहीं मिला। बड़े-बड़े हुक्मरान तो उसके दरबार में जाकर सलामी ठोकते थे। वह चलता तो किसी वीवीआईपी की तरह। आगे उसका सायरन बजाता एस्कार्ट और काफिले के सबसे पीछे आधुनिक हथियारों की नुमाइश करते बंदुकची। दो किलोमीटर तक रास्ता क्लीयर। लोग उनके ही फरमान सुनते और लागू भी वही होता। बकौल पूर्व डीजीपी डीपी ओझा उसके कनेक्शन, आईएसआई, कश्मीरी आतंकी और अल कायदा तक से थे। जब वह दुबई जाता तो 40 मर्सिडीज गाड़ियों से उसकी खिदमत होती। कहा तो यहां तक जाता है कि 1999 में नेपाल के मंत्री और दाउद का नेपाल इंचार्ज मिर्जा दिलशाद बेग की हत्या के बाद उसकी कमान साहेब के ही हाथों में आ गई थी। फिर तीसरे बेटे को भी मार डाला चंदा बाबू को बड़े-बड़े लोग मैनेज करने को समझाते। चंदा बाबू की ज़िंदगी फिर एक मनहूस दिन आया जब दोहरे हत्याकांड हत्या के चश्मदीद बेटे राजीव को 16 जून 2014 को गोली मारकर हत्या कर दी गई। जबकि 19 जून को कोर्ट में केस की सुनवाई होनी थी। एक जवान बेटे की हत्या की खबर सुनकर मां कलावती देवी बाथरूम में ही गिर कर बेहोश हो गईं। कमर की हड्डी टूट गई। चंदा बाबू भी बेहोश हो गए। होश में आने पर बोले- छोड़ेंगे नहीं, शहाबु को। अब तो हम मर ही गए हैं। 70 साल के चंदा बाबू ने दिखाई गजब की हिम्मत शहाबुद्दीन का नाम हत्या के साजिशकर्ता के रूप में आया। धारा लगी 120 बी। अब गवाह खुद 70 साल के चंदा बाबू बने। कोर्ट की सुनवाई जारी रही। पर, वे कोर्ट नहीं जाते। घर में पत्नी की देखभाल करते और चौथे दिव्यांग बेटे की भी। जज वहां खुद मुकर्रर तारीख़ पर जाते। जज का कोर्ट में इजलास लगाने की शायद बिहार में पहली घटना है। केसों की लम्बी तारीख और लगातार बहस के कारण जज का चैम्बर जेल में ही बन गया। पर, चंदा बाबू का कोर्ट भगवान का दरबार था। बराबर कहते, फैसला वहीं से होगा। शायद ऐसा इसलिए भी कहते थे, क्योंकि कई संगीन मामलों में शहाबुद्दीन गवाह और सबूतों के अभाव में बरी होते रहे। उन्हें आशंका थी कि इस मामले में भी वह बरी हो सकता है। इंसाफ की आस लगाए ही चले गए चंदा बाबूजेल में दरबार लगाने की घटना जब सार्वजनिक होकर अखबारों की सुर्खियां बनने लगीं तो उसे भेजा गया भागलपुर सेंट्रल जेल। वहां से जब कुछ दिनों के लिए बरी हुआ तो 1,300 गाड़ियों के काफिले के साथ पहुंचा सीवान। सीवान में खिदमत ऐसी कि कोई बादशाह आया हो। हर्ष फायरिंग ऐसी कि दीवाली मनायी जा रही हो। नीतीश सरकार ने भावी आशंकाओं और गुप्तचरों की रिपोर्ट को आधार बनाते सुप्रीम कोर्ट में मामले की सिफारिश की। उनमें रेखांकित करने वाला ताजा मामला बना-चंदा बाबू के तीन बेटों का। 16 दिसंबर 2020 को उनकी मौत हो गई। आखिर में शहाबुद्दीन ने भी कोरोना से दिल्ली के अस्पताल में बतौर एक कैदी दम तोड़ दिया।


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