वरिष्ठ साहित्यकार, चित्रकार प्रभु जोशी का कोरोना से निधन
मध्यप्रदेश: ख्यात साहित्यकार, चित्रकार प्रभु जोशी 71 वर्ष की आयु में मंगलवार को इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए। दो दिन पहले की बात है, वे घर पर थोड़ा घबरा रहे थे। हम ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था में लगे थे। उन्हें परेशान देख, मैं उनके पास गया। सीने पर हाथ रखकर बोला, पापा, चिंता मत कीजिए, बहुत लोग आपके साथ हैं।
उनकी प्रार्थनाएं सुनी जाएंगी। आपको कुछ भी नहीं होगा। उन्होंने जवाब दिया, बेटा मृत्यु के कान नहीं होते। उस तक हमारी कोई आवाज नहीं पहुंच पाती। उसकी सिर्फ आंखें होती हैं, जिससे हमें एकटक देखती रहती है। किसी दिन हमें चुनकर उस पार ले जाएगी... और हुआ भी वही। अंदाजा नहीं था कि ये पंक्तियां मेरे लिए, उनके हजारों-लाखों पाठकों के लिए उनके आखिरी शब्द होंगे। वे अक्सर कहते थे कि कैसे खींच दूं मैं समय और आकाश में पूर्ण विराम। कोरोना ने उनके जीवन पर विराम लगा दिया। भतीजे शतायु उन्हें विदा करते समय यही शब्द दोहरा रहे थे।
बेटे से आखिरी शब्द, मृत्यु के कान नहीं होते, सिर्फ आंखें होती हैं जिससे एकटक देखती है और किसी दिन उस पार पहुंचा देती है
लेखन, चित्रकला, रेडियो, फिल्मांकन हर विधा में पारंगत
पहली कहानी 1973 में धर्मयुग में छपी। 3 कथा संग्रह प्रकाशित, 6 अप्रकाशित। गैलरी फॉर कैलिफोर्निया से ढाई हजार डॉलर का पुरस्कार, थामसमोरान पुरस्कार भी। बर्लिन में विशेष पुरस्कार, कई रेडियो कार्यक्रम के लिए पुरस्कृत। तीन टेलीफिल्म भी बनाई।
अस्पताल जाने को राजी नहीं थे, एक दिन पहले जाकर लौट आए, दूसरे दिन रास्ते से विदा हो गए
प्रभु जोशी के 50 साल पुराने मित्र, लेखक ज्ञान चतुर्वेदी ने बताया कि सोमवार शाम से उनकी तबीयत बिगड़ रही थी। डॉ. अपूर्व पौराणिक ने मेदांता में बेड करा दिया। बेटे पुनर्वसु उन्हें लेकर अस्पताल पंहुचे भी, लेकिन प्रभु बीते दिनों हुई मौतों से इतने डरे हुए थे कि 65-60 के ऑक्सीजन लेवल पर भी भर्ती होने को तैयार नहीं हुए।
रात 9 बजे उन्हें दोबारा घर ले आए। सुबह 4 बजे पुनर्वसु ने वाट्सएप पर डाला कि दो ऑक्सीजन सिलेंडर चाहिए तो प्रभु को कॉल किया, थोड़ा डांटा, समझाया और अस्पताल जाने के लिए राजी किया। वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग उनके लिए सिलेंडर लेकर पहुंचे। मंगलवार सुबह 10 बजे अरबिंदो में एक बेड मिल भी गया। वहां जाते समय एंबुलेंस में पुनर्वसु से बोले- गुड्डू मैं थक रहा हूं यार, उसके गले मिले और विदा हो गए।