बकस्वाहा के जंगलों में मिले 25 हजार साल पुराने शैल चित्र, हीरा खनन के लिए कटने हैं ढाई लाख पेड़
जयप्रकाशछतरपुर बकस्वाहा के जंगलों () को बचाने की मुहिम के बीच शैल चित्र (25 Thousand Year Old Rock Paintings) मिलने की बातें सामने आ रही हैं। यह शैल चित्र अग्नि काल के पहले के बताए जा रहे हैं। ऐसा माना जाता रहा है कि अभी तक भीमबेटका में दोस्त शैल चित्र हैं। बकस्वाहा के जंगलों में मिलने वाले शैल चित्रों के बारे में अनुमान है कि यह 20000 से 25000 वर्ष पुराने हो सकते हैं। शैल चित्रों को लेकर प्रोफेसर एसके चारी और कई पर्यावरणविद लगातार पुरातत्व विभाग के संपर्क में हैं। साथ ही राज्य से लेकर केंद्र की सरकार तक को इन चित्रों के संरक्षण के लिए पत्र लिख रहे हैं। महाराजा कॉलेज में पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर एसके चारी ने इन शैल चित्रों को नजदीक से देखने एवं शोध करने के बाद यह पाया है कि यह शैल चित्र आपकी खोज के पहले की हैं। लिहाजा इन शैल चित्रों का ना सिर्फ संरक्षण होना चाहिए बल्कि इनका संवर्धन भी बेहद जरूरी है। पर्यावरण प्रेमी बताते हैं कि इन जंगलों से लगे 25 गांव इन्हीं जंगलों पर निर्भर हैं। समाजसेवी अमित भटनागर बताते हैं कि जिले के बकस्वाहा क्षेत्र में आग की खोज के पहले के शैल चित्र अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे है। यह अपनी उपेक्षा की कहानी खुद बयां कर रहे हैं। इनमे से कई शैल चित्रों को शरारती तत्वों ने क्षतिग्रस्त कर दिया है तो कई शैल चित्रों पर गहरी खाई जम गई है। इन शैल चित्रों के संरक्षण और संवर्धन की मांग की है। साथ ही उन्होंने इसे विश्व धरोहर घोषित करने की मांग उठाई है। भीमबेटका में 12 हजार साल पुराने शैल चित्र हैं, जिसे विश्व धरोहर घोषित किया गया है। यहां इन शैलचित्रों को देखने देश और विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। वहीं, बकस्वाहा में मिले शैलचित्र उससे दोगुनी पुरानी है। पर्यावरण बचाओ अभियान के संस्थापक सदस्य शरद कुमरे का कहना है कि महाराजा कॉलेज के पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर एसके चारी ने इन प्रागैतिहासिक शैल चित्रों का अध्ययन कर इस पर शोध पत्र जारी किया है। उन्होंने इसकी जानकारी समस्त जवाबदेह व जिम्मेवार लोगों को दी है, फिर भी इस अति प्राचीन धरोहर की उपेक्षा की जा रही है जो कि शर्मनाक है। शरद सिंह कुमरे ने कहा कि ये शैलचित्र आदिवासी समाज की धरोहर और हमारे पूर्वजों की निशानी है। इन्हें सुरक्षित रखना चाहिए और विश्व धरोहर के रूप में घोषित करना चाहिए। शरद कुमरे ने मांग की कि इसके लिए प्रशासन, सरकार, पुरातत्व विभाग को गंभीर प्रयास करना चाहिए। इससे भारत की दुनिया में प्रतिष्ठा बढ़ेगी। वहीं, इस स्थल के पास में ही भीमकुंड और जटाशंकर है, जिससे इस क्षेत्र को एक अच्छे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है, इससे लाखों पर्यटक आएंगे और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। गौरतलब है कि बकस्वाहा के जंगलों को बचाने की मुहिम चल रही है। हीरा खदान के लिए बकस्वाहा के जंगलों में ढाई लाख पेड़ काटे जाने है। इसे बचाने के लिए शहर लोग लगातार मुहिम चला रहे हैं।
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