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Indore News: संजा के गीतों में समाई लोक संस्कृति की तस्वीर

Indore News: शहर की एक संस्था ने इसे जीवित रखने का एक प्रयास गीतों की प्रस्तुतियों के जरिए किया।

इंदौर, नईदुनिया प्रतिनिधि Indore News। श्राद्ध पक्ष में मालवा-निमाड़ में संजा बनाई जाती है। दीवार पर गोबर से मंगलचिन्ह, पशु-पक्षी, मानव आदि की आकृतियां बनाकर उसे सजाया जाता है जिसे संजा कहते हैं। कन्याओं द्वारा इन आकृतियों के अंकन के साथ लोकगीत भी गाए जाते हैं। वक्त के साथ बेशक यह परंपरा खत्म होती जा रही है लेकिन शहर की एक संस्था ने इसे जीवित रखने का एक प्रयास गीतों की प्रस्तुतियों के जरिए किया।


संस्था मालवी जाजम द्वारा आयोजित कार्यक्रम में इस बार संजा के गीतों की प्रस्तुतियां हुईं। आनलाइन हुए इस कार्यक्रम में मालवा-निमाड़ के रचनाकारों ने संजा पर आधारित गीतों की प्रस्तुतियां दी और उससे जुड़ी जानकारी भी साझा की। वरिष्ठ मालवी कवि नरहरि पटेल ने कहा कि संजा मालवा की एक लोककला है जिसमें प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों को दीवारों पर चित्रित किया जाता है। मुकेश इंदौरी ने कहा कि संजा पर्व मालवा निमाड़ लोकसंस्कृति की पहचान है। यह हमारी अनमोल धरोहर है।


उज्जैन की माया बदेका ने पारंपरिक लोकगीत गीत 'छोटी सी गाड़ी संजा की रूढकती जाय, जीमे बैठया संजा बाई घाघरो धमकाता जाय, चुडै़लों चमकाता जाय, पायल छमकाता जाय, संजा की नथड़ी झोला खाय, छोटी सी गाड़ी रूढ़कती जाय' सुनाया। डा. शशि निगम ने स्वरचित लोकगीत ‘म्हारा अंगणा पधारो संजाबाई, करांगा मिजवानी’ सुनाया। बदनावर से कृष्णा गोयल ने 'म्हारे वीरा की झमक सी लाड़ी ने ओढ़ता नी आवे पेरता नी आवे' गीत सुनाया। रेणु मेहता ने भी लोकगीत पेश किया जिसमें संजा को बिदा करने की बात थी। मधु जोशी, कुसुम मंडलोई, हरमोहन नेमा, सरला मेहता, राधिका मंडलोई, नलिन खोईवाल, भीमसिंह पंवार, नंदकिशोर आदि ने भी मालवी रचनाओं का पाठ किया।
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