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MP News: बीए के सिलेबस में रामचरितमानस, मेडिकल कोर्स में हेडगेवार- एमपी में शिक्षा का भगवाकरण कर रही बीजेपी सरकार!



भोपाल 

मध्य प्रदेश में अब बीए के छात्रों को फर्स्ट ईयर में रामचरितमानस () भी पढ़ाई जाएगी। सोमवार को प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव () ने बताया कि इससे छात्रों का पर्सनैलिटी डेवलपमेंट होगा और लीडरशिप स्किल विकसित होगी। सरकार के इस ऐलान के बाद इसका विरोध () भी शुरू हो गया है। कुछ दिन पहले ही चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने बताया था कि प्रदेश में एमबीबीएस छात्रों को आरएसएस के संस्थापक केबी हेडगेवार और दीनदयाल उपाध्याय के विचारों के बारे में पढ़ाया जाएगा।

 इसके अलावा प्रदेश के विश्वविद्यालयों में कुलपति का नाम बदलकर कुलगुरु करने का प्रस्ताव भी है। 2021-22 सेशन से राज्य के उच्च शिक्षा विभाग ने फिलॉसफी के अंतर्गत रामचरितमानस के व्यावहारिक दर्शन को वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल किया है। कॉलेज और यूनिवर्सिटी में बीए फर्स्ट ईयर के छात्रों के लिए यह विषय उपलब्ध होगा। उच्च शिक्षा विभाग ने इसका सिलेबस तैयार किया है।


 इसकी 100 नंबर की परीक्षा होगी। यह विषय केवल हिंदी और दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर ही पढ़ाएंगे। उच्च शिक्षा मंत्री ने बताया कि नई शिक्षा नीति () के तहत नया सिलेबस लागू किया जा रहा है। इसमें भारत के गौरवमय इतिहास के बारे में बताने के मकसद से रामचरितमानस, महाभारत, योग और साधना जैसे विषयों को शामिल किया गया है।

 यादव ने यह तर्क भी दिया कि नासा के अध्ययन में साबित हो चुका है कि लाखों साल पहले बने राम सेतु का निर्माण मनुष्यों ने किया था और यह इंजीनियरिंग का बेहतरीन उदाहरण था। सरकार के इस फैसले को शिक्षा का भगवाकरण बताकर विपक्षी कांग्रेस और कई शिक्षाविद इसके विरोध में उतर आए हैं। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति नरेंद्र धाकड़ ने कहा है कि यह एक धर्म विशेष की श्रेष्ठता को थोपने वाला फैसला है। 

यदि छात्रों को धर्म और धार्मिक शख्सियतों के बारे में शिक्षा देनी है तो इसमें सभी धर्मों रो शामिल किया जाना चाहिए। कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद ने कहा है कि सरकार महाविधायलयो में अगर रामायण और महाभारत पढ़ाती है तो कुरान भी पढ़ाए। अगर राम सेतु में साइंस है तो कुरान में भी साइंस है। पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने भी कहा है कि उन्हें कॉलेजों में रामायण और महाभारत पढ़ाए जाने से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन फिर बाइबिल, कुरान और गुरुग्रंथ साहिब को भी सिलेबस में शामिल करना चाहिए।

 इससे सांप्रदायिक सौहार्द्र बढ़ेगा, लेकिन बीजेपी सरकार ऐसा नहीं करेगी क्योंकि यह उसकी विचारधारा से मेल नहीं खाता। एमबीबीएस कोर्स में हिंदुवादी संगठनों और उनके नेताओं को शामिल करने के फैसले का पहले से ही विरोध हो रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने कहा है कि एमबीबीएस छात्रों को अब शायद चिकित्सा शास्त्र का पढ़ाई करने की जरूरत नहीं है।

 कुलपति का नाम बदलकर कुलगुरु करने के प्रस्ताव को लेकर कांग्रेस पार्टी इंदौर में विरोध-प्रदर्शन आयोजित कर चुकी है। यह पहला मौका नहीं है जब बीजेपी सरकार ने धार्मिक ग्रंथों को सिलेबस () में शामिल करने की कोशिश की हो। साल 2011 में स्कूली छात्रों को भगवद्गीता पढ़ाने की घोषणा सरकार ने की थी, लेकिन इसके जबरदस्त विरोध के बाद यह फैसला वापस लेना पड़ा था। अब एक बार फिर सरकार के फैसलों का विरोध शुरू हो गया है। देखना है कि इसको लेकर सरकार अंतिम फैसला क्या लेती है।


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