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माफी मांगने और दया याचिका में फर्क है, ओवैसी के बयान पर संघ का पलटवार

नई दिल्ली विनायक दामोदर सावरकर के बारे में रक्षा मंत्री () के एक बयान के बाद इस पर बयानबाजी तेज हुई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास संगठन ने कहा कि माफी मांगने और दया याचिका में फर्क होता है। साथ ही एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) के तंज पर कहा कि ओवैसी की क्या सोच है पता नहीं लेकिन हमारे यहां पिता होते हैं बनाए नहीं जाते। मंगलवार को एक कार्यक्रम में राजनाथ सिंह ने कहा था कि महात्मा गांधी के अनुरोध पर सावरकर ने अंग्रेजों को दया याचिका लिखी। इस बयान पर ओवैसी ने तंज किया कि बीजेपी जल्द ही महात्मा गांधी को हटाकर सावरकर को राष्ट्रपिता घोषित कर देगी। आरएसएस के इतिहास संगठन ने क्या कहा जानिएअखिल भारतीय इतिहास संकलन के संगठन मंत्री बालमुकुंद ने एनबीटी से बात करते हुए कहा कि ओवैसी को कोई भी इतिहासकार, इतिहासकार नहीं मानते इसलिए इतिहास के विषय पर उन्हें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उन्हें राजनीति करनी है तो वह करें। 'जो भी जेल में रहता है सबके पास दया याचिका अधिकार होता है'संघ प्रचारक ने कहा कि जो भी जेल में रहता है सबके पास दया याचिका देने का अधिकार होता है। सावरकर को जेल में लंबे वक्त तक रहने और यातनाएं सहने के बाद लगा कि जेल में रहकर कुछ किया नहीं जा सकता। साथ ही गांधी जी का संदेश भी उनके पास था। गांधी जी ने कहा था कि हर कैदी के पास दया याचिका का अधिकार है उस आधार पर सावरकर को बाहर निकलकर देश की आजादी के लिए सत्याग्रह करना चाहिए। संघ प्रचारक ने कहा कि सावरकर ने सिर्फ अपनी रिहाई के लिए पत्र नहीं लिखा बल्कि पोर्टब्लेयर जेल में जितने कैदी थे सबको रिहा करने के लिए पत्र लिखा था। उस समय के इतिहासकारों और सरकारों ने उन्हें बदनाम करने की कोशिश की। संघ प्रचार बोले- दया याचिका हर कैदी का अधिकार हैसंघ प्रचारक ने कहा कि दया याचिका और माफी मांगना अलग अलग होता है। दया याचिका हर कैदी का अधिकार है। सावरकर ने उसका इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि सावरकर उच्च कोटि के विद्वान थे। उनकी अपनी प्लानिंग रही होगी कि वह अपने अधिकार का इस्तेमाल करें और जेल से बाहर निकले। बाहर निकल कर भी उन्होंने हिंदू महासभा के जरिए काम किया। बालमुकुंद ने कहा कि सबसे पहले किसी को भारत रत्न दिया जाना चाहिए था तो वह सावरकर थे।


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