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MP Bypoll Results Analysis: उपचुनाव के लिए वोटिंग से पहले ही मुकाबले के मैन ऑफ द मैच बन गए थे सीएम शिवराज, नतीजों ने लगा दी मुहर

भोपाल कुछ भी रहे हों, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस () के बीच इस सीधे मुकाबले में मैन ऑफ द मैच मुख्यमंत्री () ही रहे। वे इन चुनावों में सबसे बड़े स्टार प्रचारक तो थे ही, नतीजों को अपनी पार्टी के पक्ष में करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी भी उन्हीं के कंधों पर थी। बीजेपी को तीन सीटों पर जीत दिलाकर शिवराज ने यह साबित कर दिया के प्रदेश के नेताओं में उनकी टक्कर का फिलहाल कोई नहीं है। वो इसलिए क्योंकि उपचुनावों में सबसे बड़े स्टार प्रचारक शिवराज थे और बीजेपी उम्मीदवारों को जिताने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर थी। उपचुनावों को मुख्यमंत्री के रूप में उनके चौथे कार्यकाल पर रेफरेंडम भी माना जा रहा था। शिवराज को चौथी बार सीएम की कुर्सी जनादेश से नहीं मिली थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया के दलबदल से उनके भाग्य से छीका टूटा था। उपचुनावों में यदि बीजेपी अच्छा नहीं करती तो इसकी सारी जिम्मेदारी उनके ही मत्थे मढ़ी जा सकती थी। इस लिहाज से देखें तो उपचुनाव के लिए मुकाबला शुरू होने से पहले ही उनका मैन ऑफ द मैच बनना तय हो चुका था। अच्छी बात यह रही कि नतीजे () बीजेपी के पक्ष में रहे। महीनों पहले शुरू कर दी थी तैयारी शिवराज को भी उपचुनाव के महत्व का अंदाजा था। इसलिए उन्होंने महीनों पहले से इसकी तैयारी शुरू कर दी थी। जिलों के विकास का रोडमैप तैयार करने के लिए वे पूरे प्रदेश में खुद जाकर अधिकारियों के साथ मीटिंग कर रहे थे। इसके बाद जनदर्शन यात्रा के जरिए भी वे लोगों से मिलजुल रहे थे। रैलियों और भाषनों में अपनी सरकार की योजनाओं का बखान करने के साथ 15 महीने की कांग्रेस सरकार पर तमाम आरोप मढ़कर वे अपने पहले तीन कार्यकाल की कमियों को भी बड़ी चतुराई से कांग्रेस के पाले में डालने की रणनीति पर काम कर रहे थे। सबसे ज्यादा प्रचार करने वाले नेता एक बार उपचुनाव की घोषण हुई तो शिवराज फुल फॉर्म में आ गए। उन्होंने बिना थके बीजेपी प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार किया। प्रचार अभियान के दौरान सबसे ज्यादा सभाएं उन्होंने की। कई क्षेत्रों में तो आधा दर्जन से ज्यादा बार गए। उपचुनाव वाले क्षेत्रों के चप्पे-चप्पे में वे खुद पहुंचे। एंटी इनकम्बेंसी के खतरे के बावजूद उन्होंने इन इलाकों में नई घोषणाओं की भरमार कर दी। स्वास्थ्य केंद्र से लेकर कॉलेज और स्टेडियम तक- जहां जो मांग थी, शिवराज ने पूरा करने का आश्वासन दिया। इनमें से कितने पूरे होंगे, यह बाद की बात है, लेकिन फिलहाल तो इसका फायदा बीजेपी को मिला। दूर कर दिए सारे अंदेशे अंदेशा यह भी था कि उपचुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व उत्तराखंड और गुजरात की तरह एमपी में नए नेता की संभावनाएं तलाश सकता है। उपचुनाव के नतीजों ने इन सारे अंदेशों को खारिज कर दिया। शिवराज की कुर्सी को फिलहाल तो कोई खतरा नहीं दिख रहा। शिवराज यह साबित करने में सफल रहे कि प्रदेश में लोकप्रियता के पैमाने पर वे बीजेपी के दूसरे नेताओं से आगे हैं। इतना ही नहीं, आम लोगों से कनेक्शन स्थापित करने में शिवराज का अब भी कोई सानी नहीं है।


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