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MP Bypoll Results: पांच कारण जिसके चलते उपचुनावों में कांग्रेस को मिली हार

भोपाल : मध्य प्रदेश में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों के नतीजे मंगलवार को आए। बीजेपी ने चार में से तीन सीटें जीतकर एक बार फिर कांग्रेस को झटका दे दिया। कांग्रेस ने 31 साल बाद रैगांव सीट जरूर जीती, लेकिन जोबट और पृथ्वीपुर का मजबूत गढ़ गंवा बैठी। खंडवा लोकसभा सीट पर कब्जा जमाने का उसका सपना भी पूरा नहीं हुआ। कांग्रेस उपचुनाव के नतीजों को धनबल की जीत बता रही है, लेकिन 3-1 का स्कोरलाइन काफी हद तक प्रदेश में उसकी हालत का सही हालत बताता है। अधिकांश राजनीतिक विश्लेषक () भी इसी तरह के नतीजों की उम्मीद जता रहे थे, लेकिन जोबट सीट पर कांग्रेस की हार का अंदाजा कम ही लोगों को था। इसी तरह, रैगांव सीट पर बीजेपी की हार की उम्मीद भी कम लोगों को ही थी। दो साल बाद प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले दोनों पार्टियों की लोकप्रियता का लिटमस टेस्ट माने जा रहे इस मुकाबले में कांग्रेस के पिछड़ने के कई कारण थे। तैयारी में देरी उपचुनावों की घोषणा के बाद कांग्रेस प्रत्याशियों का ऐलान करने में बीजेपी से आगे रही, लेकिन इसके अलावा हर जगह फिसड्डी ही साबित हुई। पार्टी के बड़े नेता जब तक चुनाव प्रचार में उतरे, तब तक बीजेपी के लिए सीएम शिवराज सिंह चौहान () कई बार इन इलाकों का दौरा कर चुके थे। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा भी कई महीने पहले से दौरे कर संगठन को चुस्त-दुरूस्त करने में लगे थे। मुद्दों की कमी चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस मुद्दों के लिए संघर्ष करती दिखी। विधानसभा क्षेत्रों में स्थानीय मुद्दों पर जोर देने के बजाय कांग्रेस ने महंगाई और बेरोजगारी को बड़े पैमाने पर भुनाने की कोशिश की। कमलनाथ () अपने हर भाषण में बीजेपी पर सत्ता हथियाने के लिए खरीद-फरोख्त और शिवराज पर झूठे वादे करने का आरोप लगाते रहे। उनके पास कोविड काल में अव्यवस्थाओं से लेकर महिलाओं और आदिवासियों के खिलाफ बढ़ती हिंसा जैसे कई मुद्दे थे, लेकिन चुनाव अभियान में विरले ही कांग्रेस नेता इनकी चर्चा करते दिखे। नेताओं की नाराजगी कम से कम दो सीटों पर कांग्रेस को टिकट नहीं मिलने से असंतुष्ट अपने नेताओं की नाराजगी झेलनी पड़ी। खंडवा लोकसभा क्षेत्र में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव काफी समय से अपनी तैयारी भी शुरू कर चुके थे, लेकिन अंतिम समय में दिग्विजय सिंह के करीबी राजनारायण सिंह पुरनी को टिकट दे दिया गया। नाराज अरुण यादव चुनाव प्रचार के दौरान भी कविता और शायरी के जरिए अपना दुख बयां करते रहे। इसी तरह जोबट सीट पर दिवंगत विधायक कलावती भूरिया के भतीजे दीपक भूरिया को दरकिनार कर महेश पटेल को उम्मीदवार बना दिया गया। मान-मनौवल के बाद यादव और भूरिया प्रचार में एक्टिव तो हुए, लेकिन नतीजे आने के बाद उनकी भूमिका पर सवाल उठना तय है। गलत प्रत्याशी का चयन खंडवा में 70 साल के राजनारायण सिंह को कांग्रेस ने टिकट दिया जो 2003 के बाद पहली बार चुनाव लड़ रहे थे। उन्हें केवल दिग्विजय सिंह का करीबी होने का ईनाम मिला और काउंटिंग के दौरान पहले ही राउंड से लगातार पिछड़ते रहे। खंडवा संसदीय क्षेत्र के गिने-चुने इलाके ही होंगे जहां उन्हें बीजेपी उम्मीदवार से ज्याद वोट मिले। इसी तरह जोबट सीट पर दीपक भूरिया के साथ सुलोचना रावत भी टिकट की दावेदार थीं। उन्हें पार्टी की ओर से कोई आश्वासन नहीं मिला तो बीजेपी में शामिल हो गईं और कांग्रेस के उम्मीदवार को ही हरा दिया। रणनीति में पिछड़ी पिछड़े डेढ़ साल से अपने विधायकों की भगदड़ से परेशान कांग्रेस पार्टी चुनाव प्रचार के दौरान भी इस पर लगाम नहीं लगा पाई। वोटिंग के करीब एक सप्ताह पहले बीजेपी ने विधायक सचिन बिरला को अपने पाले में कर लिया। इससे यह भावना और बलवती हुई कि पार्टी के बड़े नेता केवल अपनी चिंता में व्यस्त हैं, विधायकों को भी नहीं संभाल सकते। खंडवा में सामान्य कैटेगरी के उम्मीदवार को प्रत्याशी बनाने की रणनीति भी फ्लॉप साबित हुई। 15 साल बाद कांग्रेस ने इस सीट से सामान्य उम्मीदवार को टिकट दिया था, लेकिन बीजेपी ने ओबीसी कार्ड खेलकर उसे पटकनी दे दी।


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