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Interview: देश की दशा से असंतुष्ट थे शंकराचार्य, पढ़ें स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का इंटरव्यू

जो भी संत हिंसा की बातें करता है, वह संत के अनुरूप आचरण नहीं करता। संतों का स्वरूप होता है 'सियाराम मय सब जग जानी करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी।' मतलब सब में परमात्मा को देखना, सद्गुणों को बढ़ाना, सबके अंदर जो असत प्रवृत्ति आ गई है उसको हतोत्साहित करना। लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करना निश्चित रूप से संतों के स्वरूप के अनुरूप बात नहीं है।

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