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रोज औसतन 50 शवों का हो रहा कोरोना प्रोटोकाल से अंतिम संस्कार



छिंदवाड़ा। जिले में शासकीय रिकार्ड में बीते साल मार्च से अब तक कोरोना से 108 मौतें हुई हैं, जबकि श्मशान घाट पर जल रही चिताएं कुछ और स्थिति बयां कर रही हैं। बीते 30 दिनों में ही शहर के तीन श्मशान घाट के रिकार्ड जोड़े जाएं तो ये आंकड़ा 850 से ज्यादा हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों से इलाज कराने भी लोग जिला मुख्यालय ही आ रहे हैं, जिनका अंतिम संस्कार कोरोना प्रोटोकॉल के तहत किया जा रहा है, इसके बावजूद ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं। 

नगर निगम द्वारा परासिया रोड स्थित परतला और नागपुर रोड स्थित देवर्धा में कोरोना प्रोटोकाल के तहत अंतिम संस्कार किया जाता है। कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते देवर्धा में 13 मार्च को श्मशान घाट शुरू किया गया। दो महीनों से कम समय में ही यहां 260 शवों का अंतिम संस्कार किया जा चुका है, वहीं परतला स्थित मोक्षधाम में बीते 30 दिनों में 500 से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार किया जा चुका है। 

एसडीएम अतुल सिंह की मानें तो अन्य बीमारियों से भी जिन मरीजों की मौत होती है, उनका कोरोना प्रोटोकॉल के तहत अंतिम संस्कार किया जाता है। इस कारण ये आंकड़ा इतना ज्यादा है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ भी सवाल उठा चुके हैं कि प्रदेश सरकार कोरोना से हो रही मौत के आंकड़े छुपा रही है।

खत्म हो गई संवेदना 

नागपुर रोड स्थित देवर्धा श्मशान घाट में काम करने वाले कर्मचारी आशीष गोदरे ने बताया कि बीते सवा महीने में वो 262 लोगों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं। बीते साल कोरोना से जिस पहले मरीज की मौत हुई थी, उसका अंतिम संस्कार भी उन्हीं ने किया था, लेकिन बीते साल की तुलना में इस साल स्थिति बहुत ही बदल चुकी है। श्री गोदरे ने बताया कि रोज 12 से 15 लोगों का कोरोना प्रोटोकॉल के तहत अंतिम संस्कार किया जा रहा है, यहां की स्थिति देखकर संवेदना ही खत्म हो चुकी है। कई लोग तो दाह संस्कार भी करने से इंकार कर देते हैं, वहीं कई लोग तो अस्थि लेने भी नहीं आते हैं। नगर निगम के करीब आधा दर्जन कर्मचारी यहां काम कर रहे हैं, लेकिन सुविधाओं के नाम पर उन्हें कुछ भी नहीं मिल रहा है। न तो पीने के पानी की पर्याप्त सुविधा है और न ही अच्छी क्वालिटी का सैनिटाइजर दिया जा रहा है। यही नहीं श्मशान घाट पर पीपीई किट भी बिखरी पड़ी नजर आईं।