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ज्योतिरादित्य सिंधिया का बीजेपी में बढ़ता कद, ग्वालियर-चंबल के दिग्ग हो रहे 'बौना'?

एच. कुमारग्वालियर-चंबल ‘ज्योतिरादित्य सिंधिया’ ये नाम कभी कांग्रेस की पहचान हुआ करता था, लेकिन अब यहीं नाम बीजेपी की शोभा बढ़ा रहा है। ज्योतिरादित्य () के नाम का दबदबा तब से है, जब पिता माधवराव सिंधिया की मौत के बाद उन्हें राजनीति विरासत में मिली। विरासत की इस धरोहर को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने न केवल सहेज कर रखा बल्कि अपने पिता की तरह ही इस विरासत का दायरा बढ़ाते हुए सिंधिया परिवार (Scindia Family News) का कद राजनीति में शिखर की ओर अग्रसर किया है। मध्यप्रदेश में पिछले कई सालों से भले ही बीजेपी की सरकार रही हो लेकिन ग्वालियर चंबल-अंचल में सिंधिया का दबदबा 'महाराज' की तरह ही बरकरार रहा है। जब सिंधिया कांग्रेस में थे, तब बीजेपी के साथ-साथ उनकी अपनी ही कांग्रेस पार्टी में उनके विरोधियों की कमी नहीं थी। दिग्विजय सिंह के खेमे से जुड़े लोग पार्टी में रहते हुए सिंधिया के लिए परेशानी खड़ी करने की कोशिश करते रहे लेकिन सिंधिया पर कभी इसका असर नहीं हुआ बल्कि विरोधियों को ही समय-समय पर मुंह की खानी पड़ी। बीजेपी के भी कई दिग्गज कांग्रेस में रहने के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया को घेरते रहे हैं। बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रभात झा तो कई बार पुख्ता दस्तावेजों के साथ सिंधिया को 'भूमाफिया' बताते हुए हमलावर रहे। मगर प्रदेश में बीजेपी की सरकार होते हुए भी उस वक्त प्रभात झा सिंधिया का कुछ नहीं कर पाए थे। घट रहा है बीजेपी के कद्दावरों का कद ग्वालियर-चंबल अंचल से बीजेपी के कई कद्दावर नेता आते हैं। इनमें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर समेत नरोत्तम मिश्रा और वीडी शर्मा हैं। मगर चंबल के इलाके में 'महाराज' के बराबर इनकी ऊंचाई नहीं है। इसकी झलक में हाल ही में देखने को मिली है। ग्वालियर-चंबल के इलाके में सिंधिया के हिसाब से जिलों के प्रभारी मंत्री बनाए गए और इनके हिसाब से ही सरकारी कर्मियों का ट्रांसफर होगा। हर चक्रव्यूह को तोड़कर निकले सिंधिया 15 साल बाद एमपी में 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी। सरकार गठन के साथ ही पार्टी के अंदर गुटबाजी चरम पर पहुंच गई। हर गुट के लोग ज्योतिरादित्य सिंधिया को उभरने नहीं देना चाहते थे। स्थिति नहीं बदलने पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस सियासी चक्रव्यूह को तोड़ते हुए पाला बदल लिया और कमल पर सवार हो गए। इसके बाद एक ही झटके में कांग्रेस की सरकार गिर गई। बीजेपी शीर्ष नेतृत्व से डायरेक्ट हैं सिंधिया वहीं, बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से सीधा संवाद होने की वजह से सिंधिया की पकड़ अब ग्वालियर-चंबल के साथ-साथ प्रदेश के बाकी हिस्सों में भी काफी मजबूत हो गई है। बीजेपी के 15 साल के लंबे कार्यकाल की वजह से जनता के बीच बीजेपी नेताओं का क्रेज कम हो गया था। जनता के बीच लाने के लिए बीजेपी के पास कोई नया चेहरा भी नहीं था। सिंधिया के रूप मे बीजेपी को एक तरोताजा और साफ छवि वाला युवा नेता मिल गया है, जिसके सहारे बीजेपी अपने भविष्य की सियासत को मजबूत करेगी। पिछली कुछ समय से हो रही राजनैतिक हलचल से तो कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। सिंधिया बीजेपी में आए हैं, तब से अंचल मे किसी दूसरे बीजेपी नेता का कोई खास रसूख नजर नहीं आ रहा है। वहीं, सरकार बनते ही सिंधिया ने अपने विधायकों को मंत्री पद दिलवाते हुए अपने मन माफिक विभाग भी दिलवा दिए। जिलो के प्रभारी मंत्री बनाए जाने में भी सिंधिया का दबदबा बरकरार रहा है। कई दशकों तक सिंधिया घराने के घोर विरोधी रहे पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया के घर शोक संवेदना व्यक्त करने पहुंचे सिंधिया ने जयभान सिंह पवैया को भी पूरी तरह शांत कर दिया। यहीं वजह रही कि हर साल झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर सिंधिया घराने पर निशाना साधने वाले जयभान सिंह पवैया इस बार सिंधिया घराने पर हमलावर नहीं हुए। दतिया से आने वाले प्रदेश के गृहमंत्री नरोतत्म मिश्रा हो या मुरैना लोकसभा सीट से आने वाले केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर हो, सिंधिया के सामने फिलहाल बीजेपी में कोई दूसरा नाम ठहरता नजर नहीं आ रहा है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी अंचल मे कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पा रहे हैं।


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