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अर्जुन सिंह ने ज्योतिरादित्य को सौंपी थी पिता की ऐतिहासिक कलम, अब माधवराव की तरह रेल मंत्रालय संभाल सकते हैं श्रीमंत

भोपाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट के विस्तार की चर्चाओं के साथ का नाम भी सुर्खियों में है। जानकारी के मुताबिक ज्योतिरादित्य का मंत्री बनना तय है और वे अपने पिता माधवराव की तरह केंद्रीय कैबिनेट में रेल मंत्रालय संभाल सकते हैं। बताया जा रहा है कि दिल्ली से बुलावा आने पर ज्योतिरादित्य अपना एमपी दौरा बीच में ही खत्म कर राजधानी लौट रहे हैं। साल 2002 में पहली बार सांसद बने ज्योतिरादित्य ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत पिता माधवराव सिंधिया के निधन के बाद की थी। 18 सितंबर, 2001 को माधवराव की एक हवाई हादसे में मृत्यु हो गई थी। तब वे गुना से लोकसभा सांसद थे। ज्योतिरादित्य ने इसी सीट से पहली बार चुनाव लड़ा और फरवरी 2002 में साढ़े चार लाख से ज्यादा वोटों से चुने गए। 

माधवराव सिंधिया चाहते थे कि उनके बेटे के साथ राजा-महाराजाओं की तरह व्यवहार न हो

कम ही लोगों को पता है कि सांसद बनने से पहले ज्योतिरादित्य एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे। दरअसल, बड़े महाराज के नाम से मशहूर माधवराव सिंधिया अपने बेटे की पढ़ाई-लिखाई और करियर को लेकर चिंतित रहा करते थे। वे चाहते थे कि उनके बेटे के साथ राजा-महाराजाओं की तरह व्यवहार न हो। ज्योतिरादित्य के बचपन से ही बड़े महाराज ने इसका खास ध्यान रखा और उन्हें आम युवकों की तरह शिक्षा-दीक्षा और नौकरी करने के लिए प्रेरित किया। माधवराव ने अपने बेटे को दून स्कूल में पढ़ने को भेजा था। उन्हें लगता था कि सिंधिया स्कूल ग्वालियर में उनके बेटे को ज्यादा लाड़-प्यार मिलेगा। स्कूली शिक्षा पूरी होने पर वे ज्योतिरादित्य को अपने साथ दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज और इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी लेकर गए। ऑक्सफोर्ड में ज्योतिरादित्य का एडमिशन नहीं हो सका तो अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में उनका एडमिशन कराया। 

साल 1991 में पढ़ाई पूरी करने के बाद ज्योतिरादित्य ने लॉस एंजिल्स में अंतरराष्ट्रीय कंपनी मैरिल लिंच के साथ अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र संघ में भी काम किया। अगस्त, 1993 में भारत लौटने के बाद उन्होंने मुंबई में मॉर्गन स्टेनले कंपनी के लिए भी काम किया। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति में सिंधिया घराने का अर्जुन सिंह परिवार से छत्तीस का आंकड़ा रहा है, लेकिन ज्योतिरादित्य ने 2001 में जब कांग्रेस की सदस्यता ली तब अर्जुन सिंह ने उन्हें माधवराव की ऐतिहासिक कलम भेंट की थी। ये वही कलम थी जिससे साल 1979 में माधवराव ने कांग्रेस की सदस्यता फॉर्म पर हस्ताक्षर किए थे। ये महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि माधवराव की अपनी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया से अनबन चल रही थी। मां की इच्छा के खिलाफ जाकर माधवराव कांग्रेस में शामिल हुए थे।



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