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World Heart Day: बिना लक्षणों के आखिर कैसे पहचानें हार्ट डिजीज? जानें एक्सपर्ट डॉ नित्यानंद त्रिपाठी की राय







World Heart Day: दिल की धड़कन रुकी और जिंदगी खत्म. किसी इंसान के जीवन में दिल (Heart) का यही महत्व है. दिल शरीर का ऐसा हिस्सा है, जो बिना रूके, बिना थके चलता रहता है. जिस दिन यह रूक गया उस दिन जीवन की गति रूक गई. दिल शरीर का इतना महत्वपूर्ण अंग है तो इसका ख्याल भी इतनी ही शिद्दत के साथ करना होगा. आधुनिक जीवनशैली में हमने अपने दिल को कमजोर कर दिया है. हमारा खान-पान और हमारा पर्यावरण हमारे दिल को नुकसान पहुंचाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. इसलिए अपने दिल के प्रति हमें अधिक सतर्क रहने की जरूरत है.


आमतौर पर दिल से संबंधित बीमारियों में कुछ लक्षण दिखाई देने लगते हैं, लेकिन कई बार बिना लक्षण दिखाई दिए ही व्यक्ति को हार्ट अटैक आ जाता है. ऐसे हालात में हार्ट डिजीज की समस्याओं से कैसे बचा जाए, इस पर फॉर्टिस अस्पताल के डायरेक्टर और कार्डियोल़ॉजी एंड इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी के यूनिट हेड डॉ नित्यानंद त्रिपाठी ने बताया कि इसके लिए हाई रिस्क वाले संभावित मरीजों की पहचान करना आवश्यक है


दिल की बीमारी के लिए हाई रिस्क में होते हैं ऐसे लोग 

डॉ नित्यानंद त्रिपाठी ने कहा, बिना लक्षण वाले लोगों को अगर हार्ट डिजीज से बचना है, तो उन्हें यह जानना जरूरी है कि कौन से लोग इस बीमारी के लिए हाई रिस्क में होते हैं. उन्होंने कहा कि आमतौर पर डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, कोलेस्ट्रॉल में बढ़ोतरी वाले मरीज हार्ट डिजीज के लिए हाई रिस्क में होते हैं. इसके अलावा कुछ फेमिली हिस्ट्री भी हार्ट डिजीज के लिए बड़ी वजह बन सकती है. अगर फर्स्ट ब्लड रिलेशन में हाइपरट्रॉपिक कार्डियोमायोपैथी (hypertrophic cardiomyopathy )है, तो ऐसे व्यक्तियों में बिना लक्षण हार्ट डिजीज होने की आशंका हो सकती है. इसमें हार्ट मोटा होने लगता है और सांस फूलने लगती है.


इसके अलावा जिसके परिवार में माता-पिता, भाई-बहन और बच्चों में किसी को भी लॉन्ग क्यू टी सिंड्रोम (Long QT syndrome) है, तो उसे भी हार्ट डिजीज का जोखिम है. इसलिए कुछ लोगों में हार्ट डिजीज की समस्या परिवार से आती है. इसके अलावा मोटापा, मेटाबोलिक सिंड्रोम और फिजिकल एक्टिविटी में कमी भी हार्ट डिजीज के जोखिम को बढ़ा सकती है. इन सबके लिए ऊपर से कोई लक्षण नहीं दिखता है.



बिना लक्षण वाले मरीज हार्ट डिजीज से कैसे बचें


डॉ नित्यानंद त्रिपाठी कहते हैं, आमतौर पर हाई रिस्क वाले मरीजों में ही हार्ट डिजीज के लक्षण नहीं दिखते. अगर व्यक्ति हाई रिस्क में है, तो 55 साल से नीचे के पुरुष और 50 साल से नीचे की महिलाओं को नियमित रूप से अपनी जांच करानी चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को हर तीन साल में एक बार ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल, इकोकार्डियोग्राफी और टीएमटी (Treadmill Test -TMT) टेस्ट कराने की आवश्यकता है.


उन्होंने कहा कि कई बार लोग अन्य बीमारियों से पीड़ित हो जाते हैं, उस स्थिति में उन्हें कई तरह की जांच भी करानी पड़ती है. इन जांचों में भी कभी-कभी हार्ट डिजीज के संकेत मिलने लगते हैं. एक्सपर्ट इन संकेतों के आधार पर उन्हें सतर्कता बरतने या आगे की जांच की सलाह देते हैं. इसलिए हार्ट के प्रति हमेशा चौकन्ना रहना जरूरी है.




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