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ओमीक्रोन से संक्रमित होने वालों को मिल जाएगी कोरोना से जीवनभर की सुरक्षा?

नई दिल्लीकोरोना वायरस के नए वेरियेंट को सार्स-कोव2 के खिलाफ नैचरल एंटिबॉडी बताया जा रहा है। कुछ एक्सपर्ट्स का दावा है कि ओमीक्रोन जाने-अनजाने हमें फायदा ही पहुंचा रहा है। उनकी मानें तो कोविड वैक्सीन और कोरोना की पहले आई लहरों से जो काम नहीं हो पाया, वो ओमीक्रोन कर देगा। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जिसे ओमीक्रोन का संक्रमण हो रहा है, वो कोरोना से हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाएंगे? दुनिया में अरबों लोगों को नहीं लगा कोरोना टीका कोविड-19 महामारी उभरने के दो साल बाद भी बड़ी संख्या में लोग कोरोना संक्रमण से बचे हैं। हालांकि, इन दो सालों में करोड़ों या कहें अरबों लोगों को इस नई बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया है। इधर, धनी देशों को छोड़कर दुनियाभर के ज्यादातर देशों में कोविड टीकाकरण धीमी गति से आगे बढ़ रहा है। यानी, अब भी अरबों लोग टीके के इंतजार में हैं। कोरोना के खिलाफ प्राकृतिक सुरक्षा कवच है ओमीक्रोन? हालांकि, ओमीक्रोन के संक्रमण की रफ्तार इतनी तेज है कि पिछली लहरों के मुकाबले बड़े-बड़े मानव समूह संक्रमित हो रहे हैं। इस कारण दिल्ली जैसे शहर में भी वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है जहां टीकाकरण का बढ़िया रिकॉर्ड है। इस कारण लगता है कि ओमीक्रोन वेरियेंट दुनिया के कोने-कोने तक पहुंच जाएगा और लोगों में आने वाले वेरियेंट्स के खिलाफ सुरक्षा कवच तैयार कर देगा। जिन देशों में लोगों को दूसरी और तीसरी डोज भी लग गई है, वहां भी ओमीक्रोन के प्रसार से सुरक्षा का स्तर कई गुना बढ़ जाएगा। कुछ एक्सपर्ट्स सहमत नहीं हालांकि, कुछ एक्स्पर्ट्स को इस नजरिए पर संदेह है। प्रतिष्ठित प्रकाशनों में आई हालिया रिपोर्ट्स कहा गया है कि ओमीक्रोन को लेकर जताए जा रहे ये विचार सराहनीय तो हैं, लेकिन अभी बहुत से राज सामने आने बाकी हैं ताकि अनुमानों को सच करार दिया जा सके। द अटलांटिक में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वायरस या संक्रमण से घुसे या फिर वैक्सीन से, आपके शरीर में इम्यूनिटी पैदा करता है, लेकिन ऐसी कोई वैक्सीन या वेरियेंट नहीं जो कोविड से पूरी तरह सुरक्षा दे सके। इसका प्रमुख कारण यह है कि कोरोना वायरस म्यूटेशन करता रहता है यानी बदलता रहता है। ओमीक्रोन वुहान से निकलने वाले वायरस से अलग है क्योंकि इसके स्पाइक प्रोटीन में 34 म्यूटेशन हैं। यह मानने का कोई कारण नहीं कि ओमीक्रोन, कोरोना वायरस का आखिरी वेरियेंट है और भविष्य में कोई वेरियेंट नहीं आएगा। संक्रमण और टीके से बनी इम्यूनिटी का अंतर समझें रिपोर्ट कहती है कि जब आपका इम्यून सिस्टम कोई समस्या ढूंढ लेता है तो वह वायरस से जुड़ी सूचनाएं लंबे समय तक संजोकर रखता है जिससे भविष्य में फिर कभी संक्रमण हो तो उसका मुकाबले बेहतर तरीके से किया जा सके। जो लोग टीका लेने के बाद भी वायरस से संक्रमित हो जाते हैं, उनकी भी इम्यूनिटी बढ़ जाती है। संक्रमण और टीकाकरण से पैदा हुई इम्यूनिटी में अंतर यही है कि संक्रमण होने पर इम्यूनिटी सिस्टम समस्या पाते ही वायरस की पूरी रचना को समझ लेता है जबकि ज्यादातर टीके शरीर को सिर्फ वायरस के स्पाइक को समझना सिखाते हैं, उसकी पूरी रचना को नहीं। टीके से ज्यादा अच्छी इम्यूनिटी संक्रमण की दूसरी बात यह है कि जिस स्पाइक प्रोटीन पर आधारित टीके बनाए गए हैं, वो तो दो साल पहले वुहान में पाए गए वायरस का है जबकि संक्रमण अलग-अलग वेरियेंट से हो रहा है। मसलन, अभी ओमीक्रोन के कारण संक्रमण की नई लहर चल रही है। इसके अलावा, चूंकि कोविड हवा में फैलने वाली बीमारी है तो संक्रमण से जो जो सुरक्षा कवच तैयार होता है वो नाक और मुंह में होता है जहां से वायरस शरीर में प्रवेश करता है, लेकिन टीके की सुई तो बांह में चुभोई जाती है। सैद्धांतिक तौर पर जो सुनने में अच्छा लगता है, वो व्यावहारिक धरातल पर भी उतना ही बढ़िया हो, इसकी गारंटी नहीं होती। इसलिए, अगर वायरस का संक्रमण भविष्य के किसी वेरियेंट को नाक या मुंह से शरीर में प्रवेश से रोक सकता तो डेल्टा वेरियेंट से संक्रमित लोगों को ओमीक्रोन का संक्रमण नहीं होना चाहिए था। लेकिन, ऐसा हो नहीं रहा है। डेल्टा के मुकाबले ओमीक्रोन ज्यादा संक्रामक दरअसल, पिछले महीने इंपीरियल कॉलेज लंदन से आई रिपोर्ट में कहा गया है कि डेल्टा वेरियेंट के मुकाबले ओमीक्रोन से उस व्यक्ति के संक्रमित होने का चांस 5.4 गुना ज्यादा जो पहले संक्रमित हो चुका है। ज्यादातर मामलों में दो डोज ले चुके लोग भी ओमीक्रोन के संक्रमण से नहीं बच पा रहे हैं। हां, इतना जरूर है कि दोनों डोज लेने वालों में संक्रमण से गंभीर बीमारियां नहीं हो रही हैं बल्कि उनमें सामान्य लक्षण ही देखने को मिल रहे। ओमीक्रोन की खासियत ही इसकी खामी भी कई लोगों में ओमीक्रोन के संक्रमण से बीमारी का कोई लक्षण नहीं दिखने या फिर सामान्य लक्षण दिखने के कारण भी इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में लंबी भूमिका निभाने की इसकी क्षमता नहीं बन पाती है। द अटलांटिक की रिपोर्ट कहती है कि अगर वायरस शरीर से तुरंत निकल जाए तो कई बार शरीर समय के अभाव में वायरस के नए पहलुओं को समझ नहीं पाता है। वैक्सीन और संक्रमण के बीच समय के अंतर का बड़ा महत्व वहीं, प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका द नेचर में छपी एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि टीका लेने के बाद वायरस से संक्रमण होने के बीच कितने दिन का अंतर है, इससे भी तय होता है कि इम्यूनिटी कितने लंबे वक्त तक बनी रहेगी। रिपोर्ट में जापानी रिसर्च के हवाले से कहा गया है कि जो लोग टीका लेने के कई महीनों बाद वायरस से संक्रमित हो गए, उन्हें ओमीक्रोन से बेहतर सुरक्षा मिल रही है। इसके ठीक उलट, अगर किसी को टीका लगने के तुरंत बाद ही ओमीक्रोन का संक्रमण हो गया तो वैक्सीन से तैयार हुई एंटिबॉडीज तुरंत खत्म हो जाएगी जिससे इम्यून सिस्टम ओमीक्रोन की चालों समझने में परेशानी होगी। अगर ओमीक्रोन ने कर लिया डेल्टा से गठबंधन! भारत में ज्यादातर व्यस्क आबादी को अगस्त के बाद दूसरी वैक्सीन डोज लगी है। इस कारण संभव है कि उन्हें ओमीक्रोन के संक्रमण का ज्यादा फायदा नहीं हो। यह नया वेरियेंट भले ही इम्यूनिटी बढ़ाए, लेकिन किसी को नहीं पता कि इससे बनी इम्यूनिटी कब तक बची रहेगी। संभव है कि कई म्यूटेशनों वाला कोई नया वेरियेंट ओमीक्रोन से पैदा इम्यूनिटी को मात दे दे जैसा कि ओमीक्रोन ने डेल्टा से पैदा हुई इम्यूनिटी के साथ किया। कौन जानता है कि ओमीक्रोन की तेज रफ्तार डेल्टा जैसे पिछले घातक वेरियेंट्स को फैलाने में मदद कर रही हो। अगर ऐसा हुआ तो ओमीक्रोन खुद कमजोर होकर भी तबाही का कारण बन जाएगा।


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