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आँखों में सैलाब

आँखों में सैलाब

आँखों में सैलाब, ख़ामोश होंठ, कहाँ जाएँगे हम

दिल के चीरते ज़ख़्म कहाँ तक छुपाएँगे हम

हर रोज़ गिरते हुए तारे की तरह टूटे हैं

किसे बताएँगे, कहाँ तक सुनाएँगे हम

सच बोलना चाहा तो कटारें ही मिलीं हाथों में

झूठ के शहर में कब तक ठहर पाएँगे हम

मक़ाम की चाह में रूह जलती ही रही

अब बुझ कर राख हो जाएँगे हम

बिखरते रिश्तों की कसक भी हँसी में ढल गई

ये दर्द अपने लहू से रंगकर सजाएँगे हम

उजालों ने चुराई है हर बार साँसों की ख़ुशी

अंधेरों के संग अपने सफ़र को निभाएँगे हम

"राहत" का फ़क़त इतना ही गुनाह है दोस्तों

ग़म-ए-दिल को शेरों में ही सजाकर सुनाएँगे हम


 'राहत टीकमगढ़