परिपक्वता - Kavita राहत टीकमगढ़
रचना – परिपक्वता
कभी हम सोचते थे
रिश्ते टूटते कैसे हैं?
लोग अचानक ख़ामोश क्यों हो जाते हैं?
हम बेवजह ढूँढते थे
हर चुप्पी के पीछे का जवाब,
हर दूरी का कारण।
हमने कई बार लिखा,
कई बार फोन किया,
कई बार खुद को साबित किया
मानो मोहब्बत एक इम्तिहान हो
और हम हर बार पास होना चाहें।
फिर वक़्त ने सिखाया…
कि लोग बदलते हैं,
रास्ते अलग होते हैं,
और हर रिश्ता सदा एक-सा नहीं रहता।
परिपक्वता वो लम्हा है
जब आप सवाल पूछना छोड़ देते हैं
"तुम फोन क्यों नहीं करते?"
"तुम जवाब क्यों नहीं देते?"
आप बस खामोशी को पढ़ लेते हैं,
फ़ासले को महसूस कर लेते हैं,
और शिकायत के बजाय सुकून चुनते हैं।
न कोई ड्रामा,
न कोई इल्ज़ाम,
सिर्फ़ होंठों पर हल्की-सी मुस्कान
और दिल में इतना हौसला
कि बिना शोर किए,
चुपचाप…
अपनी राह पर आगे बढ़ जाएँ।
"राहत टीकमगढ़"